अतुल मिश्र
आँखें हैं, फिर भी अन्धे हैं,
मछर इन पर नहीं भिनकते,
ये इतने ज़्यादा गन्दे हैं !
बाहर से तो कलफ लगे हैं,
अन्दर से कच्चे अन्डे हैं !
इनकी दिनचर्या मत पूछें,
इनके मंडे भी सन्डे हैं !
वादे पूर्ण करें वादों से,
ये इनके अपने फंडे हैं !
कुदरत इसमें क्या कर लेगी ?
गोरे हैं, काले धन्धे हैं !
छापा अगर पड़े तो बोलें,
वो चुनाव था, ये चन्दे हैं !
ईमां की जो निकली अर्थी,
ये उसके चौथे कन्धे हैं !
भाषण, वादे, तो जनता को,
सिर्फ़ फंसाने के फन्दे हैं !
सब पर अपना-अपना कुछ है,
उन पर सिर, हम पर डंडे हैं !
3 comments:
nice
waah atul ji kya khoob likha hai , netao par ek jabardasht rachna ...
vijay
Wonderful description of todays politicians.
Jolly Uncle
www.jollyunce.blogspot.com
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