Wednesday, December 30, 2009




ग़ज़ल 
हम इधर देखें कि उधर देखें,
लोग देखें कि हम जिधर देखें,

तुझको बस,देख के,ऐ पर्दानशीं
सोचते हैं कि अब किधर देखें ?

तेरी नज़रों की शोख़ियों के लिए
दिल यह करता है,ता उमर देखें !

नज़रे-मय उसकी आज पीकर हम
कैसे होता है, क्या असर देखें !

रात भर तेरी याद में जगकर
कैसी होती है फिर सहर देखें !

ये ज़रूरी है मौत से पहले
ज़िन्दगी का सही, सफ़र देखें !

कल तलक तो मरा नहीं था 'अतुल'
आज अखब़ार की ख़बर देखें !
-अतुल मिश्र