Thursday, March 18, 2010

नोटों की माला और ग़रीब


    
                                               अतुल मिश्र


    नोटों की जो महिमा है, वो किसी भी सूबे के मुख्यमंत्री से कम नहीं होती. नोट हैं तो इस ग़म से भरी दुनिया में जीने के कई सारे बहाने बन जाते हैं कि इसलिए जी रहे हैं. अपने पूर्वजन्म के कुछ ग़लत कर्मों की वजह से ग़रीब रहने वाले जिन लोगों पर नोट नहीं हैं, उनकी औक़ात सिर्फ़ एक बिकाऊ वोटर से ज़्यादा नहीं होती. वे लोग सिर्फ़ इस लायक हैं कि वक़्त या चुनाव आने पर कुछ लोगों को नोटों की मालाएं पहनते हुए देख सकें और खुश हों कि जिसे वोट देकर उन्होंने जिताया था, वह आज इस काबिल बन गया है कि नोटों की मालाएं पहन सके. इससे बड़ा संतोष कोई और नहीं कर सकते वे लोग. वैसे भी संतोष से बड़ा कोई दूसरा धन नहीं होता है, उनको शुरू से यही समझाया जाता है.
    जिस मुल्क में हज़ार का नोट एक बहुत बड़ी आबादी का सिर्फ़ सपना भर होता है, वहां अगर हज़ार-हज़ार के नोटों से बनी एक भारी-भरकम माला किसी सी.एम. को पहनाई जाती है तो इसका मतलब सिर्फ़ इतना होता है कि अपना जो सूबा है, वो तरक्की की राह पर आगे बढ रहा है. नोटों के बिना ऐसा कभी नहीं हो सकता. नोट हैं तो तरक्की है और अगर नोट नहीं दिखाए गए तो लगेगा कि सूबे के हालात सही नहीं हैं और उन्हें नोट कमाकर सही बनाया जाना बहुत ज़रूरी है. ग़रीब को इसी बात से तसल्ली हो जाती है कि उसके सूबे में कम से कम नेता लोग इतने खुशहाल हैं कि नोटों की मालाएं पहन कर अपने फ़ोटो खिंचवा रहे हैं.
    दूसरे सूबों के नेता लोगों ने जब यह देखा कि फ़लाने सूबे के सी.एम. को लोगों ने पता नहीं कहां से करोड़ों  रुपये इकट्ठे करके माला पहनाई है तो उनमें भी होड़ लग गयी कि वे भी अपने सी.एम. को थोड़ी हल्की ही सही, मगर माला ज़रूर पहनाएंगे. जो रूपया उन पर पता नहीं कहां से आया था, वे उसकी मालाएं बनवाने लगे. फिर यह बहाने ढूंढ़े गए कि इसके लिए कौन सा आयोजन किया जाये, जो देश की तरक्की के लिए बहुत ज़रूरी लगे. वह आयोजन भी करवाया गया.
    हज़ार के एक नोट का ही वज़न जब सौ-सौ के दस नोटों के बराबर होता है तो यह सोचिये कि लाखों नोटों के वज़न से बनी उस माला का वज़न कितना लगेगा-- विरोधी पार्टियों के लिए, जो चार हाथियों की सूंड के बराबर है ? जिस माला को उठाने के लिए किसी क्रेन की ज़रुरत पड़े, उसे गले में पहनकर मुस्कराना कितनी हिम्मत का काम है ? कोई दुबला-पतला नेता होता तो माला सहित उसके नीचे दबकर ही दम तोड़ देता, मगर फ़लाने सूबे के सी.एम. में कितना दम है कि माला के बीच में से हाथ हिलाकर फ़ोटो भी खिंचवा लिया और कुछ हुआ भी नहीं.

1 comment:

Anonymous said...

ye ghus khila ker choot jayengy lekin bechara gareeb aadmi hi mara jata hai vahi mara jayga