Saturday, March 20, 2010

एक महारैली मधुमक्खियों की



                    अतुल मिश्र 

    मधुमक्खियां यूं तो अपने छत्तों पर ही निवास करना पसंद करती हैं, मगर इंसानी खुराफातों से परेशान होकर वे सामूहिक रूप में कहीं भी निकल लेती हैं और फिर जो भी रास्तों में मिल जाता है, उसका वह हाल कर देती हैं कि वह यह बताने की पोज़ीशन में भी नहीं रह पाता कि उसके शरीर की यह हालत पुलिस के अलावा और किसने की है ? लड़कियों को छेड़ने पर पुलिस मनचलों की वह हालत नहीं करती होगी, जितनी मधुमक्खियों को छेड़े जाने पर खुद मधुमक्खियां कर डालती हैं. वे इसके लिए बिना किसी थाने में शिकायत दर्ज़ कराये करने को स्वतंत्र हैं.
    किसी महारैली के दौरान जब मधुमक्खियों ने सुना कि किसी भी वक़्त उनको या उनके छत्ते को छेड़ा जा सकता है, तो उन्होंने आपसी बातचीत के ज़रिये यह ज़रूरी समझा कि दुखदायी भाषणों को सुनने से तो बेहतर है कि वे अपना कोई अन्य स्थान चुन लें. स्थान-परिवर्तन के लिहाज़ से इस बात के लिए वे  पहले से ही तैयार थीं, बाकी आपसी सहमति से तय हो गया कि अब चाहे कुछ भी हो जाये, यहां कोई ग़लत बात ना तो की जायेगी और ना ही भाषणों के ज़रिये सुनी जायेगी. इसलिए भाषण देने के लिए जब तक मंच आदि की तैयारियां होती रहीं, वे खामोश रहीं. बस, जैसे ही भाषण देने के लिए कोई मंच पर उपस्थित हुआ, उन्होंने इस प्रकरण में विरोधी पार्टी पर इसकी साज़िश रचने के इल्ज़ामात लगवाने और इसकी न्यायिक जांच के सिलसिले में फंसवाने के लिहाज़ से हमला बोल दिया.
    टी,वी. न्यूज़ चैनलों पर किसी सियासी दल की महारैली से ज़्यादा इन मधुमक्खियों की महारैली दिखाई जा रही थी और बीच-बीच में यह भी बताया जा रहा था कि मानव-शरीर पर इनके कितने घातक दुष्परिणाम हो सकते हैं और इस बारे में उनके स्टूडियो में मौजूद विशेषज्ञों का क्या कहना है ? आला-अफसरों के हाथ-पाँव, जो यक़ीनन पहले ही फ़ूल चुके थे, इनको नियंत्रण में लेने के परिणामस्वरुप और भी फ़ूल गए. चूंकि अपनी जाती हुई सरकारी नौकरी और बीवी-बच्चे उस वक़्त उनके ज़हन में घूम रहे थे, इसलिए उन्होंने मधुमक्खियों को यह इजाज़त भी दे रखी थी कि कंट्रोल में आने की शर्त पर इस वक़्त वे उन्हें कभी भी, किसी भी स्थान पर काट सकती हैं.                         
      मधुमक्खियों ने उनकी शर्त को नकारे बगैर इस शर्त का उल्लंघन किया और उन्हें वहां-वहां से काटा, जहां के बारे में वे किसी को सविस्तार बता भी नहीं सकते कि अब उन्हें कैसा लग रहा है ? महारैली के बाद इसकी जांच होने में किन-किन लोगों को लपेटे में लेना है, यह भी उसी वक़्त मन ही मन सोच लिया गया और उनकी एक जुबानी लिस्ट अपने दिमाग में बना ली गयी. इसकी उच्चस्तरीय जांच के लिए उन लोगों को भी चुन लिया गया, जो इसकी जांच में निष्पक्ष रूप से इसके पीछे विरोधी दलों के हाथ साबित कर सकें. इस जांच की एक सबसे अच्छी बात यह रही कि इसमें मधुमक्खियों को दोबारा नहीं घसीटा गया कि उन्हें छत्ते पर से उतरवा कर पूछते कि सच-सच बताओ कि तुम्हें किन्होंने भेजा था या ऐसी ही कुछ बात. आखिर मधुमक्खियों से बार-बार पंगे लेना भी तो सही नहीं है, दोस्त. 
    

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