अतुल मिश्र
होली पर कॉलोनी में चंदा इकठ्ठा करना भी बड़े साहस का काम है. इसे हर कोई नहीं कर सकता. इसे करने के लिए एक अदद बेशर्मी के साथ ही दारू की एक बोतल भी चाहिए कि हौंसला बना रहे और पिछली होली पर किये गए घपले के इल्ज़ामात झेलने के काम आये. हमारी कॉलोनी में चंदा लेने में सबसे आगे जो लोग हैं, वे सब सियासी पार्टियों से जुड़े लोग हैं और चंदा मांगकर अपना धंधा चलाने में आस्था रखते हैं. बाकी जो सबसे पीछे खड़े होते हैं, वे व्यापारी लोग होते हैं और मन ही मन पूरी रक़म का हिसाब लगा रहे होते हैं कि इसमें से कितना उनके पल्ले पड़ेगा ?
"नमस्कार, मिश्र जी. कैसे हैं आप ?" मौहल्लाई राजनीति से जुड़कर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में जाने के अदम्य साहस से भरे कोई दुर्जननुमा सज्जन हमारे गेट पर खड़े होकर हमारी सलामती कन्फर्म करते हैं.
"बस, सब ठीक हैं ? और सुनाइये आप कैसे हैं ?" साथ में आई भीड़ को नज़रंदाज़ करते हुए हम ऐसे पूछते हैं, जैसे कल की होली का चंदा मांगने की बात से हम पूरी तरह अनभिज्ञ हों.
"कलेक्शन कर रहे हैं होली के लिए. आपके पास भी आये हैं." किसी का स्वर कुछ इस अंदाज़ में उभरा कि जैसे वे लोग हमसे चंदा मांगकर हम पर कोई अहसान कर रहे हों और हमें हर साल की तरह इस बार भी यह बात खुद ही समझ जानी चाहिए थी.
"कितना ले रहे हैं सबसे ?" हमने महंगाई के मद्देनज़र पहले ही कन्फर्म करना मुनासिब समझा, ताकि रक़म सम्बन्धी जो भी झटका लगना है, हम उसके लिए पहले से ही तैयार रहें.
"अबकी बार कुछ ख़ास कर रहे हैं. खाने-पीने के अलावा डांसर का भी इंतज़ाम है." किसी ने हमारी और हमारी जेब की हलचल बढ़ाने के लिहाज़ से कहा.
"डांसर की क्या ज़रुरत है ?" हमने यह सोचते हुए कि डांसर ना जाने कैसी होगी, अपनी उस ओ़र अरुचि प्रदर्शित की.
"अब चौबे जी की बड़ी इच्छा थी कि एक बार राखी सावंत को बुला लिया जाये."
"अच्छा, राखी सावंत आ रही है ?' हमने बिना चौंकने वाले अंदाज़ में लगभग खुश होते हुए पूछा.
"नहीं, वह नहीं आ पा रही है. उसे दस्त हो रहे हैं. कल ही लौटे हैं चौबे जी मुंबई से. बेचारे अपने किराए से गए थे. लेकिन क्या करें. दस्त हो गए.
अब किसी और का इंतज़ाम किया है."
"किसका ?"
"चौबे जी के गांव की ही है- रम्बतिया. बता रहे थे बहुत मस्त नाचती है." ललचाकर चंदा लेने की कला में प्रवीण मौहल्लाई नेता ने हमारी आंखों में झाँकने की कोशिश करते हुए हमें सूचित किया.
"ठीक है, अब जैसी आप अबकी मर्ज़ी. कितना देना है ?"
"एक हज़ार दे दीजिये, कम पड़ा तो फिर देख लेंगे."
हमारे अन्दर अचानक ही अपनी संस्कृति से जुड़े इस त्यौहार के प्रति श्रद्धा-भाव उमड़ पड़ा और हमने रक़म देकर होली के इस कार्यक्रम में शरीक़ होने की अनुमति दे दी.
No comments:
Post a Comment