Saturday, February 27, 2010

दैनिक व्यंग्य-स्तम्भ !!


अतुल मिश्र
इधर, जैसे-जैसे होली क़रीब आ रही थी, हमने खुद को समेटना शुरू कर दिया था. अब एक दिन शेष है रंग पड़ने के लिए और हमने अभी से 'रंगों के दुष्प्रभाव' पर रखे उस अखबारी लेख की कटिंग के मैटर का रियाज़ करना शुरू कर दिया, जिसे लेखक ने समाज में जागरूकता पूर्ण क्रान्ति लाने के लिहाज़ से लिखा था. हमने अपना जो मूड है, वो शीशे में ऐसा करके भी देख लिया कि अगर कोई रंग लगाने आ ही गया तो हमें किस तरह उस सत्यवादी अखब़ार के हवाले से समझाना है कि रंग लगाना कितना ख़तरनाक है और होली होने के बावज़ूद हम इसे लगाने से क्यों इनकार कर रहे हैं?

होली पर हम यह भी नहीं चाहते कि अगर बाहर निकलें तो वे लोग, जो नमस्ते करने में भी इधर-उधर मुंह छिपा लिया करते हैं, वे आज दारू पीकर हमारे पैरों पड़ें और 'अंकल' कह कर हमसे आशीर्वाद मांगें और बाद में यह भी उस घिसे हुए पुराने रिकार्ड की तरह दोहरायें कि हमसे कोई ग़लती हो गई हो तो माफ़ कर दें. अब जैसे वर्मा जी हैं. हर साल आते हैं रंग लगाने. कोई इस किस्म का रंग लगा जाते हैं कि हमें ठंड के बावज़ूद पत्थर से रगड़-रगड़ कर नहाना पड़ता है. इसके अलावा, वे अपनी पूरी शक्ति का प्रदर्शन हमसे गले मिलते वक़्त कर देते हैं कि अगर पड़ोसी होने के नाते कभी झगड़ा होने की नौबत आये तो हम उनकी खानदानी शफाखाने जैसी ताक़त का स्मरण कर लें.

होली पर हम यह भी पसंद नहीं करते कि लोगबाग खुद तो अकेले होली मिलने आएं और हमसे पूछें कि "भाभी जी नहीं दिखाई दे रहीं?" हम नहीं चाहते कि हम भी ग़ैर औरतों से अपने हिसाब से होली खेलें. फिर यह कैसे अच्छा लगेगा कि कोई हमारी बीवी के न दिखाई देने पर कोई सवाल करे कि वह क्यों नहीं दिखाई दे रही हैं? कई लोग, जो भांग पीकर गुजियां खाने के शौक़ीन होते हैं. वे पेट-संभव जितनी खा सकते हैं, उतनी तो खा ही लेते हैं, बाकी जेबों में रखकर ले जाते हैं कि अपनी बीवी को बताएंगे कि भाभी के हाथ की गुजियां कितनी अच्छी हैं, देखो.

हमने घर पर यह निर्देश भी दे रखे हैं कि कोई हमें पूछने आये तो कौन-कौन से बहाने करने हैं? मसलन, कहीं बाहर गए हैं या इतनी ज़्यादा हालत खराब है कि आपके आने की सूचना भी अगर दे दी तो हो सकता है, हालत और भी बिगड़ जाए या काफी देर पहले आपके घर की तरफ ही गए थे, बहुत देर से लौटे ही नहीं हैं. हमने बच्चों को यह भी समझा रखा है कि अंतिम वाले बहाने का इस्तेमाल सबसे पहले करना. जो लोग हमारी आदतों से वाक़िफ हैं, वे फ़ौरन अपने घरों की तरफ भागेंगे कि यार, इस बन्दे ने किसी किस्म की होली न खेल ली हो हमारे घर पर. क्या करें, दुनिया ऐसी ही है, दोस्त.

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