Sunday, February 28, 2010

गर्दभ आरती

गर्दभ आरती 
        अतुल मिश्र 
ओम जय गर्दभ भ्राता, ढेंचू, जय गर्दभ भ्राता !
जो तुमको पुजवाता, यही जनम पाता !!
ओम जय गर्दभ भ्राता !!!

    नेता या कउओं से, हैं जितने प्राणी,
    मूरख, हैं जितने प्राणी,
    इन सबकी तुम सबसे, मिलती है वाणी !
    ओम जय गर्दभ भ्राता !!

    तुम पी. एम. या सी. एम., सबमें वास करो,
    घोंचू, सबमें वास करो,
    ज़्यादा खाकर, ज़्यादा गैसें पास करो !
    ओम जय गर्दभ भ्राता !!

    भारत के सब वासी, हैं इतने खेंचू,
    लल्ला, हैं इतने खेंचू,
    कहते तुमसे बैटर, करते हैं ढेंचू !
    ओम जय गर्दभ भ्राता !!
 
    भंग पिए तुम जब भी, हँसते, मुस्काते,
    भौंदू, हँसते, मुस्काते,
    नेता, पागल, सिर्री, झेंप-झेंप जाते !
    ओम जय गर्दभ भ्राता !!

    आज तुम्हारी आरती, जो कोई नर गावै,
    मूरख, जो कोई नर गावै,
    पत्रकार वो बनके, नैक्स्ट जनम पावै !
    ओम जय गर्दभ भ्राता !!

    नेता तेरे पालक, तू उनका बालक,
    बौड़म, तू उनका बालक,
    आज मंच पर आना, बनकर संचालक !
    ओम जय गर्दभ भ्राता !!

......और अब अंत में सब जयकारा लगाएं कि 
बोलो, गर्दभ महाराज की जय !!  बोलो, उनकी सुरीली आवाज़ की जय !!
बोलो, मूर्खाधिपतियों के ताज की जय !!  बोलो, कोतवाल सहित यमराज की जय !!
बोलो, नेता, कउओं और बाज की जय !!  बोलो, भगंदर, बवासीर और खाज की जय !!
बोलो, लौकी, मूली और प्याज की जय !!  बोलो, क़र्ज़ से अधिक ब्याज की जय !!
बोलो, नकली दूध के छाछ की जय !!   बोलो, कल-परसों की मिलाकर आज की जय !!

    

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