जबर-ख़बर
अतुल मिश्र
जाट- महारैली !
अचरज़ की आँखें भी, थीं फैली की फैली !!
विधायकों के वेतन-भत्तों में बढ़ोत्तरी !
क्या सोचा ? किसलिए करी ??
भारी बर्फ़बारी !
कुदरत बोली, "कब तक रक्षा, कर सकता है, कोई तुम्हारी ??"
जाट-समुदाय का दवाब काम आया !
यह क्रैडिट इनकी ताक़त के नाम आया !!
फ़ागुन में सावन की झड़ी !
"ऐती जल्दी आ जाने की, कौन ज़रुरत आन पड़ी ??"
पारा गिरा !
इंसानी मर्ज़ी से आजिज़, कुदरत का भी माइंड फिरा !!
सुविधाएं !
वोट-बैंक पक्का हो, तो हम, इन्हें अधिक से अधिक दिलाएं !!
पंचायतें !
खुद जिन पर ना अमल कर सकें, देतीं वही हिदायतें !!
बीमारी !
कुछ लोगों को यह होती है, तबियत पूछें लोग हमारी !!
बुढ़ापा !
वही हमें लेकर आया है, सफ़र, आज तक जितना नापा !!
ग़रीब !
अगर नहीं हों, तो फोटो में, नेता किनके दिखें क़रीब !!
1 comment:
Blogers me aap ka sawagat hai.aap ki rachana sundar hai.
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