Friday, February 12, 2010

जबर-ख़बर


जबर-ख़बर 
        अतुल मिश्र 

जाट- महारैली !
अचरज़ की आँखें भी, थीं फैली की फैली !!

विधायकों के वेतन-भत्तों में बढ़ोत्तरी !
क्या सोचा ? किसलिए करी ??

भारी बर्फ़बारी !
कुदरत बोली, "कब तक रक्षा, कर सकता है, कोई तुम्हारी ??"

जाट-समुदाय का दवाब काम आया !
यह क्रैडिट इनकी ताक़त के नाम आया !!

फ़ागुन में सावन की झड़ी !
"ऐती जल्दी आ जाने की, कौन ज़रुरत आन पड़ी ??"

पारा गिरा !
इंसानी मर्ज़ी से आजिज़, कुदरत का भी माइंड फिरा !!

सुविधाएं !
वोट-बैंक पक्का हो, तो हम, इन्हें अधिक से अधिक दिलाएं !!

पंचायतें !
खुद जिन पर ना अमल कर सकें, देतीं वही हिदायतें !!

बीमारी !
कुछ लोगों को यह होती है, तबियत पूछें लोग हमारी !!

बुढ़ापा !
वही हमें लेकर आया है, सफ़र, आज तक जितना नापा !!

ग़रीब !
अगर नहीं हों, तो फोटो में, नेता किनके दिखें क़रीब !!

1 comment:

DILSHAD AHMAD ANSARI said...

Blogers me aap ka sawagat hai.aap ki rachana sundar hai.