काव्य : यूं तिरे नाम से घबराता हूं, कि सरे-शाम से घबराता हूं,
Sunday, December 27, 2009 विविध
कि सरे-शाम से घबराता हूं,
तेरी यादों में, ख़ुदकुशी कर लूं,
सिर्फ अंज़ाम से घबराता हूं !
जिसमें मगरूर मैं कहा जाऊं,
सिर्फ उस काम से घबराता हूं !
मुझको मजबूर ना करो, साक़ी,
इन दिनों ज़ाम से घबराता हूं !
अपने आंसू की कसम कहता हूं,
दर्दे-पैग़ाम से घबराता हूं !
मुझको दर्दे-सुकूं मिले कैसे ?
मैं तो आराम से घबराता हूं !
अपने ईमां की बता दो कीमत,
मैं कहां दाम से घबराता हूं ??
तू किसी रास्ते मिले ना मिले,
मैं सरे-आम से घबराता हूं !
-अतुल मिश्र
2 comments:
bohot hi khoobsurat kalaam Atul jii...daad kubool karain.
Shukriya, My Thoughts Ji !!
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