अतुल मिश्र
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश). पीतल की कलाकृतियों के निर्यात के लिए दुनियाभर में मशहूर मुरादाबाद का नाम अब बाल-श्रमिकों के शोषण के लिए भी मशहूर हो रहा है. प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस महानगर में आज भी सैकड़ों बाल-मज़दूर चोरी-छिपे अनेक पीतल-निर्यातकों के लिए काम कर रहे हैं. श्रम-विभाग और प्रशासन की मिलीभगत के चलते इन बाल-मज़दूरों को केमिकल-संबंधी और अन्य ख़तरनाक किस्म के ऐसे कामों में लगाया जा रहा है, जो इन बच्चों के जीवन के लिए बहुत ही घातक हैं.
इस बारे में अधिक जानकारियां करने पर कुछ ऐसे तथ्य उभर कर सामने आए, जिनसे बाल श्रम अधिनियम की धज्जियां उड़ती नज़र आती हैं. आज भी अनेक दैनिक बाल-मज़दूर आसपास के गांवों-कस्बों से यहां रोज आते देखे जा सकते हैं. यही नहीं, अनेक दुकानों पर बच्चों को मजदूरी करते आज भी देखा जा सकता है. धनाड्य वर्ग भी तेजी से बाल-मज़दूरों को अपनी कोठियों पर घरेलू काम-काज के लिए रख रहे हैं. इनमें कम उम्र की बच्चियों को भी शारीरिक शोषण करने के लिहाज़ से रखने का चलन अब आम हो गया है.
कई मर्तबा अनेक सामाजिक संगठनों ने इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज़ भी बुलंद की है, मगर शासन-प्रशासन अपने कानों में तेल डाले बैठा है. एक अनुमान के अनुसार, क़रीब डेढ़ हज़ार बाल-मज़दूर इस समय नियमित तौर पर इस महानगर में कार्यरत हैं. ग़रीब और पिछड़े वर्ग के उत्थान के दावे करने वाली उत्तर प्रदेश सरकार भी इन बाल-मज़दूरों के बारे में कोई सख्त कदम नहीं उठा पा रही है. ऐसे हालत में बाल श्रम अधिनियम सिर्फ कागज़ी औपचारिकता ही बनकर रह गया है.
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