जब कभी शम्मां जले, तो देखिये,
कुछ पता अपना चले, तो देखिये,
किस तरह, हम किसलिए बेचैन हैं?
शाम को सूरज ढले, तो देखिये !
सिर्फ दरवाज़े पे दस्तक न करें,
जब इमारत भी हिले, तो देखिये !
झूमता है किस कदर मगरूर सा,
फूल जो पूरा खिले, तो देखिये !
रह गई हैं क्या अधूरी हसरतें,
मौत रस्ते में मिले, तो देखिये !
हाथ में चाकू या खंज़र तो नहीं,
दोस्त मिलता है गले, तो देखिये !
जा रहे हैं अलविदा, ऐ दोस्तो,
हों अगर शिक़वे-गिले, तो देखिये !
-अतुल मिश्र
3 comments:
bahaut badhiya sir jeeeeeee!!!!!!!
Pretty good!!
Pretty good!!
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