Wednesday, November 25, 2009





जब कभी शम्मां जले, तो देखिये,
कुछ पता अपना चले, तो देखिये,

किस तरह, हम किसलिए बेचैन हैं?
शाम को सूरज ढले, तो देखिये !

सिर्फ दरवाज़े पे दस्तक न करें,
जब इमारत भी हिले, तो देखिये !

झूमता है किस कदर मगरूर सा,
फूल जो पूरा खिले, तो देखिये !

रह गई हैं क्या अधूरी हसरतें,
मौत रस्ते में मिले, तो देखिये !

हाथ में चाकू या खंज़र तो नहीं,
दोस्त मिलता है गले, तो देखिये !

जा रहे हैं अलविदा, ऐ दोस्तो,
हों अगर शिक़वे-गिले, तो देखिये !
-अतुल मिश्र


3 comments:

Mudit Bansal said...

bahaut badhiya sir jeeeeeee!!!!!!!

Anonymous said...

Pretty good!!

Anonymous said...

Pretty good!!