अतुल मिश्र
कचहरी एक ऐसी जगह होती है, जहां आपसी झगड़ों का निपटारा करने या वकीलों की मार्फ़त करवाने की गरज से लोग जाते हैं और बातों ही बातों में एक नया झगड़ा मोल ले लेते हैं कि इसका निपटारा भी यहीं कर लेंगे! ज़र, जोरू और ज़मीनें अगर नहीं होतीं तो यह निश्चित था कि गर्मियों में काले कोट पहनकर हंसते रहने वाले न वकील होते और न ही वे जज होते, जो तमाम बयानों और गवाहों के मद्देनज़र इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि फ़लाना दोषी है और फलाने को बाइज्ज़त बरी किया जाता है! बेईज्ज़ती होने के बाद वह बाइज्ज़त अपने घर जाता है!
"वकील साहब, अगली डेट कब पड़ेगी?" मुक़दमे बाज़ी के शौक़ीन एक देहाती ने अपनी खाली हो चुकीं जेबों को अपने दोनों हाथों से टटोलते हुए ऐसे पूछा, जैसे अगर इस मुक़दमे कि डेट न पड़कर इसे निपटा दिया गया तो उसे एक नए मुक़दमे के बारे में सोचना मुश्किल होगा!
"चिंता न कर, मुक़द्दम, यह मुक़दमा अभी फ़ाइनल नहीं होने दूंगा! अपनी जान की बाज़ी लगा दूंगा, इसकी डेट्स लेने में! पेशकार और बाबू सब अपने ही चेले हैं! एल.एल.बी. कर चुके वकील ने अपने देहाती क्लाइंट को आश्वस्त करने की शैली में समझाया!
"वो तो ठीक है वकील साहब, लेकिन आपके मुंशी हमसे बताय रहे हैं कि मुक़दमे में कोई जान नहीं है और इस बार यह तुम्हारे हक़ में फ़ाइनल हो जाएगा? यह तो नाइंसाफी है, साब!" मुक़दमों को ही जीवन का असली रस समझने वाले देहाती मुक़द्दम ने कुछ परेशान होते हुए मुंशी कि बदनीयती का साफ़-साफ़ खुलासा किया!
"वो तो बावला है! मैं समझा दूंगा उसे! आगे से वह इस किस्म की बातें नहीं करेगा तुमसे!" वकील ने मुक़दमे बाज़ी के शौक़ीन देहाती को पूरी तसल्ली देते हुए कहा!
"सोच रहा हूं कि मेढ़ों को लेकर भी एक मुक़दमा लड़ लूं! देहात से आना-जाना भी रहेगा और अंग्रेजी सिनेमा भी देखना हो जाएगा!" मुक़द्दम ने 'मुक़दमे ही जीवन हैं', इस मौलिक स्लोगन की घोषणा करते हुए वकील साहब को अगले मुक़दमे की पेशगी भी अदा कर दी!
2 comments:
"वो तो बावला है! मैं समझा दूंगा उसे! आगे से वह इस किस्म की बातें नहीं करेगा तुमसे!" वकील ने मुक़दमे बाज़ी के शौक़ीन देहाती को पूरी तसल्ली देते हुए कहा!
bahut tikhi panktiyaan hain....!
jaari rahey...
बहुत खूब अतुल जी ये मुक़दमे न होते तो वकीलों की रोजी रोटी कैसे चलती .....!!
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