Thursday, November 19, 2009





अतुल मिश्र
"चलो बच्चो, बताओ कि हमारे पूर्वज कौन थे ?" मास्टर साहब ने प्राचीन इतिहास का एक ऐसा सवाल छात्रों से पूछ लिया, जिसको लेकर छात्रों में अक्सर मतभेद होता था और जो वानर-जाति से खुद को जोड़े जाने कि वजह से था!

"सर, हमारे पूर्वज तो हमेशा से ही ग्राम-प्रधान रहे हैं! और लोगों के या आपके पूर्वजों के बारे में हमें जानकारी नहीं है कि वे कौन थे?" देहात के एक खुराफाती इतिहास-छात्र ने इतिहास-सिद्ध जानकारी को नज़रअंदाज करते हुए jawaab दिया!

"मैं तुम्हारी वंशावली नहीं पूछ रहा! तमाम इंसानों कि बात कर रहा हूं कि उनके पूर्वज कौन थे?" मास्टर साहब ने बन्दर की शक्ल से मिलते-जुलते एक ऐसे छात्र से सवाल किया, जिसको लेकर वह अपने चिंतन के क्षणों में डार्विन की थ्योरी पर अपनी प्रमाणिकता की मोहर लगा दिया करते थे कि उसने कुछ सोचकर ही इंसानों को 'वानरों की औलादें' कहा होगा!

"सर, आप यह सवाल मुझसे ही क्यों पूछते हैं? मैं तो कई मर्तबा बता चुका हूं हमारे और आपके पूर्वज बन्दर थे और पेड़ों पर ही रहा करते थे!" वानरमुखी छात्र ने अपनी मुखाकृति को 'पूर्वज गिफ्टेड' सिद्ध करते हुए निस्संकोच मास्टर साहब को याद दिलाया!

"...........फिर भी....... तुम सही जवाब देते हो, इसलिए तुमसे पूछ लेता हूं!" वानर-वंश के नवनिर्मित दस्तावेज़ के तौर पर वानारमुखी छात्र को प्रोत्साहित करते हुए मास्टर साहब ने कहा!

"मेरे पिताजी बुरा मानते हैं कि इतिहास का यह सवाल तुमसे ही क्यों पूछते हैं तुम्हारे मास्टर साहब?" ऐतिहासिक धरोहर सिद्ध होते छात्र ने अपनी पारिवारिक समस्या की ओ़र ध्यान खींचते हुए मास्टर साहब के सामने अपनी बात रखने की कोशिश की!

"मैं तुम्हारे माताजी और पिताजी की समस्या को बखूबी समझ सकता हूं! डार्विन का नाम सूना है तुमने? वो भी यही सोचते थे,जो मैं सोचता हूं कि आदमी के पूर्वज बन्दर रहे होंगे!" सार्वजनिक तौर पर बंदरों द्वारा की जाने वाली अश्लील हरकतों का स्मरण करते हुए इतिहास के मास्टर साहब ने छात्र से भविष्य में ऐसे सवाल न पूछने के लिए आश्वस्त किया और ब्लैक बोर्ड पर बन्दर और बंदरियानुमा कुछ अजीब से चित्र बनाने में व्यस्त हो गए

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