Tuesday, November 17, 2009




राजनेता कल्याण !
जिस दल में पहुंचे उस दल ने, त्याग दिए, बॉडी से प्राण !!

राजकीय सम्मान !
कुछ सलाम दे, फिर घर जाकर, सो जा, लम्बी चादर तान !!

सुधार-कार्य शुरू !
पहले अपने घर में कर लें, फिर बाहर करवाएं, गुरु !!

दीवार को लेकर पथराव !
पत्थर बोले,"इंसानों पर, है दिमाग का पूर्ण अभाव !!"

लूट चोरी में दर्ज !
जिसकी कोई दवा नहीं हो, पालें ऐसे-ऐसे मर्ज़ !!

हरे पेड़ काटकर भागे !
इन्हें बेचकर वन-विभाग ने, सोचा क्या करना है आगे ??

महंगाई पर चिंता !
चिंता करने वाले वोटर, तुझको कोई, कहीं नहीं गिनता !!

'महंगाई-भत्ता दो !'
रोटी तो हम खा ही लेंगे, हमें चाट का पत्ता दो !!

भूख-हड़ताल !
"चल बे, अपने थैले में से, खाने वाला टिफिन निकाल !!

धांधली !
सबको हिस्सेदार बनाकर, अपनी-अपनी रक़म बाँध ली ??

पर्दाफ़ाश !
'ले-देकर' कुछ दिन को पर्दा, और पड़ा रहता यूं, काश !!
-अतुल मिश्र


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