Tuesday, November 17, 2009





अतुल मिश्र
आधुनिक लैला-मजनूं सार्वजनिक रूप से प्यार करने के जुर्म में थाने में लाये गए थे ! थानेदार उन्हें देखते ही बोला -
"आओ, लैला-मजनूं की किताब के पेपर बैक संस्करण !! यह सड़कें उन हरकतों के लिए बनी हैं,जो तुम वहां कर रहे थे ? "
"जी, हम तो कोर्स की बातें कर रहे थे ! " मजनूं ने अपनी बात में कोर्स की अहमियत दिखाते हुए कहा !
" वो तो हमें पता है कि तुम कौन से कोर्स कि बातें कर रहे थे ? " दरोगा ने अपने बैंत को उठाते हुए पूछा , " यही सिखाया है तुम्हारे मां-बाप ने तुम्हें ?? "
" जी नहीं ! " लड़के ने बात रफा-दफा करने के लिहाज़ से कहा !
" यह जो तुम्हारे साथ खड़ी है, यह तुम्हारी बहन लगती होगी, क्यों ? " थानेदार ने मजनूं के संभावित उत्तर की हत्या करते हुए पूछा !
" जी, बहन तो है, मगर हमारे दोस्त की है ! " वर्तमान काल के मजनूं ने " बहन " शब्द के महत्व पर जोर देते हुए कहा !
"बहुत खूब, बातें अच्छी बना लेते हो ! " थानेदार ने ' शोले ' फिल्म के अंग्रेजी ज़माने के जेलर के अंदाज़ में कहा !
"सर, आप हमें ग़लत समझ रहे हैं ! "
" मैं तुम्हें वही समझ रहा हूं, जो मुझे समझना चाहिए, समझे ? " थानेदार ने आधुनिक लैला को सरसरी निगाहों से देखते हुए पूछा , "तुम कहां रहती हो ? "
" जी, घर पर ! " लैला ने शर्माने के प्रयास में कहा !
"घर पर , यानि किस जगह ? " थानेदार ने पूछा !
" अपने वाले वाले कमरे में ! "
"तुम्हारे घर का कमरा किस मोहल्ले में है ? " अपनी विद्वता पर खुद को शाबाशी देते हुए थानेदार ने पूछा !
" एस. पी. साहब के बाजू वाला मकान है ! " लैला ने कहा !
"अच्छा, तुम वहां रहती हो? कितना पवित्र स्थान है वो, कैसा सुगन्धित वातावरण है वहां का ...... वाह !! ऐ हवलदार, माफ़ी मांगो इनसे और कोर्स की बातें करने के लिए इन्हें वहीँ छोड़कर आओ, जहां से इन्हें उठाकर लाए थे ! जाओ !! "


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