Tuesday, November 17, 2009





अतुल मिश्र 
" सड़क का ठेका आप ही के पास है ? " बड़े अफसर का छोटा, मगर निहायत महत्त्वपूर्ण सवाल हवा में उछला !
" जी, मेरे पास ही है ! " खुद को गुनाहगार न समझते हुए ठेकेदार ने पूरे आत्मविश्वास से कहा !
" कितने दिन में काम पूरा हो जाएगा ? " अफसर ने पूछा !
" साल भर तो लग ही जाएगा, साहब ! " ज़्यादा वक़्त में ज़्यादा लागत का हिसाब लगाते हुए जवाब मिला !
" एक महीने में नहीं हो सकता ? " जीवन क्षण-भंगुर है और वक़्त का कुछ नहीं पता कि कब, क्या हो जाए, इस भावना के तहत अफसर ने सवाल किया !
" हो भी सकता है, साहब, लेकिन वो बात नहीं आ पाएगी ! आप हुक्म करें तो महीने भर में करा दें ? " अफसर से आदेश पाकर कृतार्थ होने के अंदाज़ में ठेकेदार ने प्रतिप्रश्न किया !
" यही सही रहेगा ! " कमीशनखोरी में अल्प वाक्यों का प्रयोग 'सेफ' रहता है, यह सिद्ध करते हुए अफसर ने 'एकमाही सड़क-कार्यक्रम' को हरी झंडी दिखा दी !
" सर, एक ही गुज़ारिश है कि बरसात में जब सड़क उखड जाए तो अगली बार का ठेका भी हमारा ही करा दें ! " कमीशनखोरी में सहभागिता के हिसाब से ठेकेदार ने आग्रह किया !
" चिंता मत करो ! मेरा ट्रांसफर भी हो गया तो आने वाले अफसर को बता जाऊँगा कि तुम कितने ' टेलेंटेड ' हो, जो साल भर का काम एक महीने में निपटा देते हो ! हर अफसर यही पसंद करता है ! " कमीशनखोरी की सर्वव्यापकता पर अपनी टिप्पणी करते हुए अफसर ने आश्वस्त किया !
" बस, सर, आपकी कृपा-द्रष्टि बनी रही तो जहां-जहां आपकी पोस्टिंग होगी, मैं वहां-वहां भी अपने इस हुनर का इस्तेमाल कर सकूंगा ! " ठेकेदार ने अफसर को भावी कमीशनखोरी के अंगूर दिखाते हुए एक बड़ा लिफाफा उनके सामने रख दिया !
" वैरी गुड ! लगे रहो ! " लिफाफे में रखी नोटों की गड्डियों को विश्वास नाम की चीज अभी भी मौजूद होने की वजह से अफसर ने बिना देखे अपने बैग में रखते हुए प्रोत्साहन दिया और कुछ धूल फांक रहीं मोती फाइलों में नयी संभावनाएं तलाशने लग गया !

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