देश सेवा एक नेता की
Thursday, April 08, 2010 व्यंग्य
अतुल मिश्र
देश की सेवा करने के साथ ही अपनी और अपने परिवार की सेवा करने वाले नेता के कुछ ऐसे उसूल थे, जो खुद के अपने थे और उन पर जनता को भले ही नाज़ ना हो, मगर उन्हें इन पर नाज़ था. वे एक ऐसी पार्टी के वरिष्ठ नेता थे, जिसके कुछ अपने उसूल थे और जो वक़्त के हिसाब से बदल जाया करते थे. लेकिन नेता जी के उसूलों ने बदलने से मना कर दिया था, इसलिए वे यथावत रहे और आज भी हैं. उनकी पार्टी जब सत्ता में थी, तब भी उसूलों ने बदलने से शायद मना कर दिया था कि हमें नहीं बदलना. काम के बदले दाम अगर लेने हैं तो लेने हैं, यह नहीं कि फ़ोकट में काम कर दिया कि उनके साले के सगे साले के बहनोई का मसला है तो कुछ ना लें. देश की सेवा के लिए यह उनका पहला उसूल था और जिसके बिना वे देश-सेवा को असंभव मानते थे.
डकैती के पेशे में जब उन्होंने यह देखा कि कोई ख़ास इनकम अब नहीं रही और कभी भी पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर हवालात में बैंतों से सुताई हो सकती है, तो वे देश की सेवा वाले काम में कूद पड़े. इसमें उन्हें ज़्यादा मुनाफा दिखाई दिया. जो लोग उन्हें कल तक ' कलुआ ' कहकर बुलाते थे, आज वही लोग उन्हें श्री काली प्रसाद जी कहकर संबोधित किया करते हैं. अपने इलाके से चुनाव जीतकर वे यह बात साबित कर चुके थे कि कितनी भी अत्याधुनिक वोटिंग मशीनें मंगा ली जाएं, उनके वोट उतने ही पड़ेंगे, जितने उन्होंने सोच रखे थे कि पड़ने चाहिए. डकैती के दिनों में उनकी गोपनीय समाज-सेवा भी इसकी एक अहम् वजह थी.
पहले वे सिर्फ़ अपने धर्म में ही आस्था रखते थे, मगर सियासत में आने के बाद वे सभी धर्मों को समानता के भाव से देखने लगे थे और अक्सर अन्य धर्मों के धार्मिक कार्यक्रमों में बिना निमंत्रण के ही पहुंच जाया करते थे. यह बात भी लोगों को बेहद प्रभावित करती थी कि जिसके मारे कभी पुलिस सहित सारा इलाका कांपता था, वह अब उनके समारोह में बिना बुलाये आने लगा है, तो लोगों ने दूसरे गुंडे और टुच्चे प्रत्याशियों की जगह उन्ही को वोट देना ज़्यादा मुनासिब समझा. इसी के बल पर वे कई सालों से चुनाव जीतकर देश की सेवा कर रहे थे.
उनके कई उसूलों में से एक यह भी था कि मंत्री बनने के बाद तमाम गांवों की ग़रीब महिलाओं के घर जाकर वे खाना ज़रूर खाते थे और बाक़ायदा अपने फ़ोटो भी खिंचवाते थे ताकि सनद रहे और वक़्त ज़रूरत अखबारों में न्यूज़ सहित छपवाने के काम आए. इस दौरान जिसके हाथ का खाना ज़्यादा अच्छा लगता था, वे एक रात उसके घर रुकने का सौभाग्य भी उसे प्रदान करते थे. ऐसे सौभाग्यों से वे कई महिलाओं को नवाज़ चुके थे. मीडिया वालों ने जब इस पर अपनी शंका ज़ाहिर की तो उन्होंने अपनी उम्र का हवाला देते हुए यह साफ़ कर दिया कि वे यह सब देश के लिए ही कर रहे हैं. और यह बात सही भी थी कि देश की इसी सेवा की बदौलत आज गांव-गांव में उनकी औलादें हैं और जो ग्राम-प्रधानी के चुनावों से अपनी देश की ख़ातिर नेतागिरी की शुरुआत कर रही हैं.
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