Monday, April 26, 2010

एलियंस की डायरी में लालू यादव

एलियंस की डायरी में लालू यादव 
                        अतुल मिश्र 


     एलियंस की एक डायरी किसी वैज्ञानिक को मिली थी, जिसे पढकर वह हैरान रह गया कि प्रथ्वी के बारे में वे लोग वही सोचते हैं, जो हम लोग खुद अपने बारे में मन करते हुए भी कभी सोचना नहीं चाहते. किसी अखब़ार के हवाले से आज जो भी पता चला है, वह उस डायरी के बारे में ज़्यादा है, जो हिंदी में अपने पटना-प्रवास के दौरान एलियंस द्वारा लिखी गयी थी और जब वह वैज्ञानिक अपनी पालतू भैंस को चारा डालने गया था तो उसकी सहचरी भैंस ने सिर्फ़ इसलिए वह डायरी चबा ली कि उसे पहले चारा क्यों नहीं डाला गया ? बहरहाल, डायरी तो भैंस के इस दुनिया में ना होने की अहम् वजह से आज इस दुनिया में नहीं है, मगर वह वैज्ञानिक से ज़्यादा अखब़ार वालों के सामने कुछ सवाल खड़े कर रही हैं.
    भैंस द्वारा चबा ली गयी उस डायरी के कुछ अंश आज भी उस वैज्ञानिक को याद हैं. उसकी शुरूआत में ही लिखा है कि हम प्रमाणित करते हैं कि हम सब जो धोखे से अपनी यह डायरी यहां छोड़े जा रहे हैं, यह हमारी ही है और इसमें हमारी कोई ऐसी मंशा नहीं है कि हम प्रथ्वी वासियों को जलील करें या उन्हें उनकी औक़ात दिखा दें कि फिलहाल क्या है और अगर वे चाहते तो क्या हो सकती थी ? हम लोग शान्ति के साथ अपने ग्रह पर ही रहने में खुश हैं. पहले हमने सोचा था कि प्रथ्वी पर चलकर कोई सरकारी ज़मीन ले लेंगे, मगर यहां आकर पता चला कि वह ज़मीन, जो हमने पसंद की थी, वह नेताओं ने कब्ज़ा रखी है और इस जन्म में हमें नहीं मिल सकती, लिहाज़ा हमने फैसला कर लिया कि हम अपने ग्रह पर ही घिचपिच में रह लेंगे, मगर इस ग्रह पर मीडिया कि सुर्खियां बनने के लिए कभी भी नहीं आयेंगे.
    एलियंस की इस चबा ली गयी डायरी में साफ़-साफ़ लिखा है कि हम जाना तो कहीं और चाहते थे, मगर किसी इंडिया नामक मुल्क के पटना नामक शहर में हमारे यान का ईंधन ख़त्म हो गया और हमें वहीँ उतरना पड़ा. यहां ईंधन तो हमें 'ब्लैक' नामक किसी ख़ास व्यवस्था की वजह से नहीं मिला, मगर यह जानकारी ज़रूर मिली कि यहां पर हमसे मिलते-जुलते कुछ ऐसे प्राणी ज़रूर रहते हैं, जो नेतागिरी के अलावा और कोई काम नहीं करते. ज़्यादा जानकारी करने पर हमें बताया गया कि यहां पर  खुद से गयी-गुज़री समझी जाने वाली भैंसों का चारा खाने वाले लोग भी रहते हैं और अगर ज़्यादा दिन तक हम यहां पर रुके तो हमारा बचा-खुचा चारा, जिसे हम लोग 'खाना' कहते हैं, भी खा लिया जाएगा और फिर डकार भी नहीं ली जायेगी कि कोई सबूत भी रहे.
    डायरी में आगे लिखा था कि यहां के चिड़ियाघर को देखने  की इच्छा ज़ाहिर करने पर हमें किसी लालू प्रसाद यादव नामक प्राणी के घर पर छोड़ दिया गया कि यहां पर सभी किस्म के प्राणी आते-जाते मिल जायेंगे. हमने उक्त प्राणी के घर के दरवाज़े पर जब दस्तक दी तो दातून नामक कोई चीज चबाते हुए कोई प्राणी आया और हमसे अजीब किस्म की भाषालापी शैली में पूछने लगा कि " क्या हमारी ससुराल से आये हो ? " हमारे ख़ामोश रहने पर फिर हमसे पूछा गया कि " भाई, बोलते काहे नहीं हो कि हमारी पार्टीवा ज्वाइन करने आये हो ? " इस दौरान हमने देखा कि सवाल पूछने वाले के कानों के पास  इतने बाल उग आये थे, जितने उसके पूरे सिर पर भी नहीं रहे होंगे. हमने वहां की ज़मीन के नमूने लिए और किसी तरह ईंधन का जुगाड़ करके अपने ग्रह की तरफ निकल लिए, ताकि इस पर हम रिसर्च करके यह अंदाजा लगा सकें कि चारा खाकर भी कोई आदमी कैसे ज़िन्दा रह सकता है ? डायरी के अंत में नीतीश कुमार नाम के किसी एलियंस के हस्ताक्षर साफ़ दिखाई दे रहे थे.
       

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