Monday, April 19, 2010

सड़ी हुई गर्मी का पड़ना


सड़ी हुई गर्मी का पड़ना 
                   अतुल मिश्र   


    हर साल गर्मियों में लोगों को इतनी सड़ी गर्मी लगती है, जितनी इससे पहले कभी नहीं लगी. बची-खुची कसर अखब़ार और न्यूज़ चैनल पूरी कर देते हैं यह बताकर कि पारा आसमान फाड़कर ऊपर निकल गया है और अब ढूंढने से भी नहीं मिल रहा कि उसे नीचे ला सकें. न्यूज़ को ऐतिहासिक बनाने के  लिए कोई न्यूज़ चैनल  बताता है कि एक बार मुग़ल बादशाह अकबर के ज़माने में इतनी गर्मी पड़ी थी, तो अकबर ने बीरबल से इसकी वजह पूछी. बीरबल ने कहा कि हुज़ूर, अपने मुल्क की चारों दिशाओं में आपका जो तेज़ बढ़ रहा है, उसकी वजह से ऐसी गर्मी हो गयी है. इस बारे में चैनल उस क़िताब का ज़िक्र करना भी नहीं भूलता, जिसका नाम " आईने-अकबरी " है और जिसे अनारकली से वक़्त मिलने पर अकबर बादशाह लिख लिया करते थे. 
    चैनल बताता है कि " आईने-अकबरी " में भी हालांकि इस बात का कोई ज़िक्र नहीं है, मगर कुछ बुजुर्गों ने अपने बुजुर्गों से ऐसा सुना था, इसलिए यह ग़लत भी नहीं हो सकता. गर्मी से बेहाल लोग किस तरह घर से बाहर निकलकर अपनी रोजी-रोटी के कामों से जा रहे हैं, इसी को तस्वीरों की मार्फ़त दिखाने में स्थानीय अखब़ार अपने दो-तीन पेज भर देते हैं. इनमें सबसे ज़्यादा ध्यान इस बात पर दिया जाता है कि आरक्षण के ख्वाब देख रहीं महिलायें कैसे मुंह पर कपड़ा बांधे निकल रही हैं ? उनका कपड़े बांधना और ना बांधना दोनों ही न्यूज़ बन जाते हैं.आदमी अगर बुर्का पहनकर भी निकले तो कोई फोटो वाली न्यूज़ नहीं बनती.
    " गर्मी से बेहाल, स्कूल जाते नौनिहाल, " जैसी ख़बरें हर साल इसी किस्म के टाइटिल के साथ प्रेस-फोटोग्राफर और पड़ोसिनों के बच्चों के 'फोटुओं' के ज़रिये स्थानीय अखबारों की सुर्खियाँ बन जाती हैं. लोग अखब़ार देखकर पूरी तैयारी से अपने दफ्तरों या दुकानों की ओ़र रवाना होते हैं कि कहीं लेने के देने ना पड़ जाएं. तरह-तरह की ख़बरें छपती हैं कि फलां जगह गर्मी से इतने लोग मरे. अब वे लोग भले ही भूख से मरे हों, सरकारी रिकॉर्ड में जो दर्ज़ हो गया, वही अंतिम सत्य बन जाता है. सरकारें इन हालातों से सख्ती से निपटने की घोषणाएं करती हैं और अंत में यह निर्णय लिया जाता है कि लोग बिना पानी पीने से मर रहे हैं, इसलिए जगह-जगह प्याऊ लगवाकर क्यों ना उन्हें नगर-निगम का पानी पिलाकर ही मारा जाये.
    गर्मी के साथ एक प्रोब्लम यह भी है कि यह उन्हीं दिनों में पड़ती है, जब गर्मियों के दिन होते हैं. जाड़ों में गर्मियां जब पड़ने लगेंगी तब कोई दिक्कत नहीं होगी, ऐसा सरकार का मानना है. गर्मियों में बिजली भी अपने पूरे नखरे दिखाती है और जब मन हुआ तब आती-जाती है. जिस दिन यह पूरे दिन आती है, उस दिन लोग समझ जाते हैं कि शहर में सत्तारूढ़ पार्टी का कोई मंत्री वगैरह आया होगा. जिस बिजली की भारी किल्लत इन दिनों बताई जाती है, वह किसी नेता के आते ही कहाँ से आयातित की जाती है, इसे बिजली-अफसरों के अलावा और कोई जानना भी चाहे तो कभी नहीं जान सकता.

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