Wednesday, April 7, 2010

रेल पुलिस और राम भरोसे

  
                       अतुल मिश्र 

    भारतीय रेल में सफ़र करते हुए अगर जेब ना कटे तो आश्चर्य होता है, कटने पर लोग सोचते हैं कि यह तो होना ही था. टिकिट की लाइन से अगर बच भी गए तो पूरी रेल पड़ी है कि कभी भी जेब साफ़ करवा दे. राम भरोसे भी इसी डर से अपना वह पर्स, जिसमें कम तनख्वाह और ज़्यादा महंगाई के मद्देनज़र जितने भी रुपये रखे थे, वह उन्होंने संभालकर अपने बैग में रख लिया था. जेबतराश भी पारखी थे, इसलिए उनका पूरा बैग ही साफ़ कर गए. अब उन्हें शोर मचाना बाकी था, जो उन्होंने मचाकर अच्छी खासी भीड़ जमा कर ली. यात्रियों के अलावा कुछ पुलिस वाले, जो यक़ीनन इसी बात का इंतज़ार कर रहे थे, राम भरोसे के पास पहुंच गए.
    " क्या हुआ ? " जब भी कोई वारदात होती है, तो पुलिस वाले सबसे पहले यही सवाल करते हैं, जो ज़ाहिर है कि घटना की भावी तफ्तीश के लिए वे ज़रूरी समझते होंगे.
    " बैग लेकर भाग गया कोई. " राम भरोसे ने रेलवे की पुलिस को देखकर ऐसे जवाब दिया, जैसे उन्हीं में से कोई सिविल ड्रेस पहनकर उनका बैग लेकर भाग गया हो.
    " क्या था बैग में ? " जेबकतरों के पकड़े जाने पर यह सवाल उतना ज़रूरी नहीं था, जितना उनके ना पकड़े जाने से पहले पुलिस को लगता है. इसी भावना के तहत यह सवाल हुआ.
    " दो जोड़ी कपड़े और कुछ रुपये थे. " राम भरोसे के इस जवाब से पुलिस वालों के कान खड़े हो गए.
    " कितने रुपये थे ? " जेब कतरों के पकड़े जाने पर वास्तव में कितने रुपये दिखाने हैं, इस लिहाज़ से सवाल हुआ.
    " यही कोई हज़ार-बारह सौ होंगे. " चोरी गयी रक़म को ज़्यादा से ज़्यादा बताने की बजाय राम भरोसे ने सही बताना ज़रूरी समझा.
    " चलो, हमारे साथ चलो. रिपोर्ट लिखानी होगी. " दोनों पुलिस वाले एक साथ बोले.
    " छोडिये. अब जो हो गया, वो हो गया. " राम भरोसे ने सुन रखा था कि अगर मर भी जाओ तो अपने मरने की रिपोर्ट लिखाने थाने कभी मत जाना, वरना तुम्हारी लाश के भी कपड़े उतर जायेंगे और फिर नंगे ही पोस्टमार्टम हाउस तक जाना पड़ेगा.
    " अजी, छोडिये. जो जिसके भाग्य का था, वह ले गया. अब काहे की रिपोर्ट लिखानी. " राम भरोसे ने अपनी जेब में पड़ी रेज़गारी को आशावादी नज़रों से टटोलते हुए जवाब दिया. 
    " ऐसे कैसे नहीं लिखवानी है ?  रिपोर्ट तो लिखानी ज़रूरी होती है. " पुलिस वालों की आंखों में राम  भरोसे को जो कुछ दिखाई दे रहा था, वह उनके वे कपड़े थे, जो इस समय तो वे पहने थे, मगर जल्दी ही उतारे जाने थे.
    " मैं तो वैसे ही मज़ाक कर रहा था. मेरा कुछ भी चोरी नहीं गया. " राम भरोसे ने रेलवे-पुलिस से पीछा छुडाने की गरज से कहा.
    " पुलिस वालों से मज़ाक ? " दोनों पुलिस वाले इतना कहने के बाद राम भरोसे को प्लेटफार्म पर मौजूद एक ऐसे कोने में ले गए, जहां पुलिस से मज़ाक करने की उन गंभीर धाराओं का हवाला देते हुए, जो फिलहाल उन्हें याद नहीं थी, उनके कपड़े तो रहने दिए गए, मगर जेब में मौजूद सारी रेज़गारी ले ली. गयी

1 comment:

Creative Manch said...

राम भरोसे ने सुन रखा था कि अगर मर भी जाओ तो अपने मरने की रिपोर्ट लिखाने थाने कभी मत जाना, वरना तुम्हारी लाश के भी कपड़े उतर जायेंगे और फिर नंगे ही पोस्टमार्टम हाउस तक जाना पड़ेगा.

ha....ha,,,ha,,ha,,,ha,,,ha,,
bahut khoob
satya vachan

aanand aa gaya yahan aakar
dhanyvaad