Monday, March 22, 2010


अतुल मिश्र
गप्पें हांकने में शर्मा जी का कोई जवाब नहीं था. या तो वे बोलते ही नहीं थे और अगर बोलते थे, तो उस बात की शुरुआत तो किसी बहुत ऊंची गप्प से होती ही थी, समाप्ति भी गप्प से ही की जाती थी, ताकि सनद रहे और आने वाली नस्लों को सुनाने के काम आये. वे एक निष्काम गप्पी थे. उनके अन्दर ऐसी कोई कामना नहीं थी कि अभी जिस अंतर्राष्ट्रीय स्तर की गप्प वे छोड़कर चुके हैं, लोग उसे सही समझें या नहीं. वे अपने उस धर्म का निर्वाह कर रहे थे, जो गप्पों पर ही आधारित था और चाहकर भी कोई उनको उससे अलग नहीं कर सकता था.
" कल ओबामा का फोन आया था कि आप यानि हम, अमेरिका कब आ रहे हैं ? " छोड़ो तो इतनी ऊंची छोड़ो कि लोगों का मुंह इस किस्म से खुला रह जाये कि वे आगे सुनने के अलावा कोई बात ही पूछने की पोज़ीशन में ही ना रह पायें. कुछ ऐसे ही भाव से उनकी बात की शुरुआत हुई.
" अच्छा ? " हमने हमेशा की तरह उनकी गप्प का पूरा सम्मान करते हुए ऐसे पूछा, जैसे यह बात यक़ीन करने लायक तो नहीं है, मगर चूंकि वे खुद कह रहे हैं, तो उस पर अविश्वास भी कैसे किया जा सकता है?
" और क्या, कल रात ही आया था फोन. परेशान थे कि आप वहां इंडिया में क्या कर रहे हैं ? हमारे सलाहकार काहे नहीं हो जाते ? " गप्पों के दौरान अगर कोई पद लेने की बात चले तो वह किस स्तर का लिया जाना चाहिए, इससे पूरी तरह वाक़िफ शर्मा जी ने अपनी बात रखी.
" बहुत बड़ी बात है यह. " हमने उनके घर के किसी कोने से अचानक कभी भी आ जाने वाली उस चाय की ओ़र देखने की कोशिश करते हुए कहा , जो अभी तक भी नहीं आ पायी थी.
" पूछ रहे थे कि यार, इस दहशतगर्दी से कैसे निपटा जाये, शर्मा जी ? हालात बहुत बिगड़ते जा रहे हैं. तो हमने सोचा कि यार, इंडिया वाले अपने शर्मा जी यानि हमसे पूछकर देखते हैं. " शर्मा जी गप्पों के दौरान इस किस्म की बातें पूछने के कतई ख़िलाफ थे कि " ऐसा कैसे हो जाएगा? " या " अरे, नहीं ? " आदि-आदि.
" यह तो वाक़ई कमाल की बात है कि आपको ही बुलाया ? " हमने वैसी कोई बात, जो उन्हें कतई पसंद नहीं है कि उनसे पूछी जाये, बिना पूछे ही अपनी जिज्ञासा ज़ाहिर की.
" और क्या ? चाइना और ईरान के बारे में भी कई बातें पूछी उन्होंने कि इनका क्या हल निकाला जाना चाहिए? हमने भी कह दिया कि दोस्त, ये बातें फोन पर करने की नहीं हैं और जब खाने-पीने बैठेंगे, तभी मुमकिन है, तो उसने 'फटाक' से कह दिया कि बीसा भिजवा रहा हूं. मिलते ही चल पड़ना." अखबारी ज्ञान का सबसे अच्छा इस्तेमाल कैसे किया जाता है, यह प्रमाणित करते हुए शर्मा जी ने बताया.
शर्मा जी के घर के अन्दर से हमारी बहुप्रतीक्षित चाय आ चुकी थी. हम बिना यह पूछे कि अब आप अमरीका कब जा रहे हैं, चीनी-विहीन चाय की चुस्कियों का आनंद तब तक लेते रहे, जब तक महीने भर के अखबारों में छपे बराक ओबामा के भाषणों में मौजूद मुद्दों पर उनके द्वारा शर्मा जी से मांगी गयीं सलाहों के बारे में वे हमें एक निहायत ही सुलझे हुए लेखक समझकर गप्पाते नहीं रहे. इसके बाद फिर कभी ज़रूर मिलने का आश्वासन लेने के बाद ही उन्होंने हमें अपने घर जाने की इजाज़त दी. हम रास्ते भर यही सोचते रहे कि अगर गप्पें हांकी भी जाएं तो उनका दायरा उतना ही विस्तृत होना चाहिए, जितना शर्मा जी का है. वरना गप्पें हांकने का मज़ा ही क्या है, दोस्त?

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