Saturday, March 13, 2010

खटारा सिटी बस की सवारियां


खटारा सिटी बस की सवारियां
                                                                               अतुल मिश्र. 

    वह एक औसत दर्ज़े की खटारा सिटी बस थी. सवारियां उसमें चढ़ नहीं रही थीं, बल्कि चढ़ने के प्रयास में थीं कि कहीं से कोई इंच भर सुराग भी अगर मिल जाये तो अन्दर घुसने की तमाम कोशिशों को एक बार ऊपर वाले का नाम लेकर पूरा करके देख लिया जाये. कई लोग जो पहले से भेड़-बकरियों को शर्मिंदा करने की शैली में अन्दर मौजूद थे, वे इस चिंतन में लगे थे कि अपने आप को अब कैसे और किस उपाय से बाहर निकाला जाये ? जो लोग इस गति को प्राप्त होने की कोशिशें बाहर से अन्दर घुसने में कर रहे थे, उनकी अहमियत सिर्फ़ इतनी थी कि वे अपने बलबूते पर ही अन्दर आ सकें तो आ जाएं, वरना बस जो है, वो चलने वाली है. 
    ड्राइवर और कंडक्टर की निगाह में इनकी पोज़ीशन सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे उन सांसदों से ज़्यादा नहीं थी, जो इस मुगालते में रहते हैं कि सरकार उनके भरोसे चल रही है और किसी भी वक़्त बिना मुहूर्त देखे वे अपने समर्थन-वापसी का पूरा मूल्य उससे वसूल कर लेंगे. अन्दर ठुसी पड़ी सवारियां बाहर की सवारियों को अन्दर ना आने की सलाह देने वाले अंदाज़ में घूर रही थीं. ड्राइवर ने इस निश्चय के आधार पर कि अब बाहर की सवारियां बस के कभी भी उखड़कर हाथ में आ जाने वाले पाइप को पकड़कर लटक चुकी हैं, अपनी बस को कई मर्तबा स्टार्ट करने की कोशिशें कीं तो बस बिना किसी बहसबाजी के स्टार्ट हो गयी.
    बस की सीटों जैसी लगने वाली उन बैंचों पर, जिन पर 'महिलायें' शब्द किसी दूसरी क्लास में फ़ेल हुए पेंटर के हाथ से लिखा जैसा लग रहा था, उसके आसपास अनारक्षित  पुरुषों की भीड़ सबसे ज़्यादा मौजूद थी और जिससे यह साफ़ तौर पर ज़ाहिर हो रहा था कि 'महिला-आरक्षण' के बाद इस मुल्क के सरकारी महकमों के हालात क्या होंगे ? पुरुषों में इन महिलाओं की रक्षा के लिए उनके पास आकर खड़े होने की एक खामोश होड़ सी जारी थी और उसमें वे लोग ही ज़्यादा सफल नज़र आ रहे थे, जो खानदानी शफाखाने के हकीमों की तरह स्वस्थ थे और रोज़ाना महिलाओं की रक्षा के लिए 'डेली पैसंजर' के रूप में प्रतिबद्ध थे.
    परिवहन-विभाग से आपसी ताल्लुकातों के आधार पर चल रही इस बस के हौर्न को छोड़कर बाकी सारे अंग कुछ ऐसी आवाजें कर रहे थे, जिनसे गीता का यह सार प्रमाणित हो रहा था कि आत्मा का जब मूड करे, तब वह इस देह को त्यागकर कभी भी उससे अलग हो सकती है. सांस लेने लायक जगह ना होने के बावज़ूद लोग बेईमानी से पता नहीं कैसे और कहाँ से सांसें ले रहे थे ? यात्रियों के मनोरंजन के लिए ड्राइवर के सौजन्य से कुछ हिंदी फिल्मों के फ्लॉप गाने भी पता नहीं इस खटारा बस के किस हिस्से से सुनाई दे रहे थे. जैसे कि "बीड़ी जलाई ले, जिगर से पिया, जिगर में बड़ी आग है, आग है, आग है." ड्राइवर की बीड़ियां, जो बिना किसी जिगर की मदद के बार-बार जल रही थीं, इस खटारा बस के सड़कों पर चलाये जाने के रहस्यों को उजागर कर रही थीं. नियम और क़ानून हर चौराहे पर खड़े मुस्करा रहे थे.
    

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