Thursday, March 11, 2010

देहाती आल्हा में संसद


                                                                       देहाती आल्हा में संसद 
                                                                                                   अतुल मिश्र 

    ऊपर वारो, जिसको अब तक, कबहु, किसी ने देखो नाय. वो ही हमको बुद्धि देगो, कैसे हु 'आल्हा' लिखवाय. इसे पढ़न को नाय ज़रुरत, कोई पूरी बुद्धि लगाय. जेती है, वेती काफी है, काम वाऊ से हु चलि जाय. ज़्यादा ध्यान लगाने वारो, जामै से कछु ना ले पाय. बिना ध्यान के पढ़ने वारो, लालू यादव सो बन जाय. खुद तौ सी.एम. बनो भतेरो, बाकी बीवी को बनवाय. इस 'आल्हा' को पढ़ने वारो, उन जैसो विद्वान् कहाय. सबहि औरतन को आरक्षन, दे या ना दे, समझ ना पाय. संसद में बैठो है जाकै, सोचै क्या झगड़ो करवाय. साथ मुलायम, शरद ले लिए, उनको लड़ने कौ उकसाय. मगर मार्शल आयें ज्यों ही, खुद भोलो, सीधो बन जाय. दुनिया के सारे प्राणिन में, यह प्राणी दुर्लभ कहलाय. वक़्त देख कै, वक़्त-वक़्त पै, साथ वक़्त के ही हो जाय.
    दिल्ली में जाकै देखौ तौ, सारो हाल पतो चल जाय. संसद के दोनों सदनन की, हालत देख सरम आ जाय. कोई रिस्तन वारी गाली, देतो, कोई चपत लगाय. ऐसी हालत अखबारन में, हमसे सुबह पढ़ी ना जाय. रोज़ाना होते हंगामे, रोज़ाना नई दिक्कत आय. आरक्षन को लेकै कोई, अपनो गलो फाड़ चिल्लाय. सहमत होनै के मुद्दन पै, सहमत कोऊ होऊ ना पाय. जो सहमत होनो हू चाहै, कोऊ दूसरो वाय डराय. बाहर जाकै देख लेन की, धमकी धीरे सै कह जाय. जबहू औरतन के मुद्दन पै, आरक्षन की नौबत आय. कोऊ कहै, पहलै उनको दो, जिन अंधन ने दियो जिताय. बाकी तौ आंखन वारे हैं, उन्हें बाद में भी मिल जाय.
    मुश्किल में सरकार पड़ी है, किसकी सुनै, किसै टरकाय ? जिसको टरकाने की सोचै, वही खोपड़ी पै चढ़ जाय. ऐसे में निर्णय होतो है, कोई बहस ख़तम करवाय. प्रणव मुखर्जी जैसो नेता, इसीलिये है दियो बनाय. जब भी कोई मुसीबत आवै, अपनी बुद्धि सै निपटाय. लेकिन अबहि विपक्षी नेता, तरह-तरह सै उन्हें चिढ़ाय. सरकारी एजेंट कहें कुछ, कोई चमचा भी कह जाय. फिर भी ऐतो धैर्य रखो है, चश्मे सै देखै, मुसकाय. टी.वी. पै हंगामो जब भी, सरकारी चैनल दिखलाय. लगतो है संसद में कोई, युद्ध घरेलू ना हो जाय. वोटर तो बेचारो है पर, इनको सदबुद्धि मिल जाय. लड़ने सै कछु नाय फायदो, आरक्षन हर कोई पाय.
    संसद की गरिमा को जो भी, नेता कभी ठेस पहुंचाय. अगला जनम मार्शल जैसा, पाकै जीवन भर पछताय. लेकिन जिसके करम जिस तरह, के हैं, वह वैसी गति पाय. बाकी जैसी हरि की इच्छा, इन लोगों से वही कराय. हमने तौ संकेत दे दियो, संसद में जो लड़ने आय. बिना मार्शल के संसद से, बाइज्ज़त बाहर हो जाय. वरना कोई नहीं फायदा, दाग बेज्ज़ती पर लग जाय. अतुल मिश्र ने लिक्खी आल्हा, संसद में जो इसे पढाय. उसका जीवन  पी. एम. जैसा, शादी का लड्डू बन जाय. कोई खाय या ना खाय, दोनों हालत में पछताय.
    

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