Friday, March 5, 2010

दैनिक व्यंग्य-लेख-स्तम्भ !!


अतुल मिश्र
सत्संग चल रहा था. स्वामी जी अपनी हैसियत से ज़्यादा ऊंचे मंच पर बैठे थे. भक्त चूंकि अभी वह ऊंचाई पाने लायक पोज़ीशन हासिल नहीं कर पाए थे, इसलिए वे नीचे बैठे, स्वामी जी का चेहरा ही देख रहे थे. सत्संग जारी था.

".......तो मैं बता रहा था कि कभी पराई नारी की ओर ग़लत भाव से मत देखो, यह सब मिथ्या है." स्वामी जी ने नारियों के उस समूह की ओर एक गिद्ध दृष्टि डालते हुए इस बात को कुछ ऐसे अंदाज़ में कहा, जैसे वे उन तमाम नारियों को ग़लत भाव से देखने के लिए परमात्मा की ओर से अधिकृत हों और जो लोग अपने पूर्व जन्मों के कर्मों की वजह से अभी इस लायक नहीं बन पाए हैं, उन्हें आगाह कर रहे हों कि इसके कितने भयंकर दुष्परिणाम होते हैं.

"दुर्योधन ने द्रौपदी को ग़लत दृष्टि से देखा तो उसका क्या अंजाम हुआ? बहुत बुरा हुआ. वह कही का नहीं रहा. राजपाट भी गया और अंत में उसकी हार हुई सो अलग." प्रवचन अभी भी उस विषय से नहीं हट पाया था, जो आज बहुत महत्वपूर्ण था और स्वामी जी की तरफ से स्पष्टीकरण मांग रहा था. कुछ बूढ़ी औरतें जो इस बात से पूरी तरह से इत्तेफाक रखती थीं, उठकर मंच की ओर आईं और स्वामी जी के गले में फूलों का हार डालकर सबसे आगे ही बैठ गई.

"शास्त्रों में साफ़-साफ़ लिखा है कि अपनी बीवी के अलावा सभी औरतों को अपनी बहन-बेटियों की नज़र से देखो." बिना उन शास्त्रों का हवाला दिए कि वे कौन से शास्त्र हैं, जिनमें इस किस्म की बातें लिखी हैं, प्रवचन आगे बढ़ रहा था.

"जो लोग फिर भी नहीं मानते और ऐसे ही नीच कर्मों में लगे रहते हैं, उन्हें 'श्वान-योनि' यानि कुत्ते की योनि में जन्म लेना पड़ता है और अपने मालिक से तिरस्कार का सामना करना पड़ता है. आप जगत में जितने भी कुत्ते देख रहे हैं, वे सब पिछले जन्मों में इसी प्रकार के पाप-कर्म करने की वजह से ही इस गति को यानि स्थिति को प्राप्त हुए हैं." कुत्तों के बारे में अपनी नई थ्योरी प्रस्तुत करते हुए स्वामी जी ने एक सरसरी निगाह फिर औरतों के समूह पर डाली तो औरतों ने भी "जय हो, महाराज की जय हो", जैसे गगन भेदी नारों से पूरा पंडाल हिलाकर रख दिया.

"सत्य बोलो, किसी का बुरा मत सोचो और अपने गुरु की शरण में ही रहो, इन बातों का ध्यान रखोगे तो जीवन जो है, वो अच्छा रहेगा, वरना यह जो जीवन है, वो कहीं का भी नहीं रहेगा यानि जीवित रहते हुए भी मरे हुए के सामान ही रहोगे." स्वामी जी ने अपने प्रवचन को अंतिम रूप देते हुए सत्संग-आयोजक की ओर एक निगाह डालकर अपने उठने की मूक सूचना दी और उसके बाद किसी ऐसे फ़िल्मी गाने से अपनी बात पूरी की, जिसका भावार्थ कुछ इस प्रकार था कि 'लग जा गले, कि फिर ये हसीं रात हो ना हो, शायद कि इस जनम में मुलाक़ात हो ना हो."

"परमात्मा कहते हैं कि हे प्राणी, किसी और के गले लगने से बेहतर है कि तू मेरे गले लग जा, क्योंकि यह रात भी कपटी है, इसका कोई भरोसा नहीं कि यह फिर हो या ना हो. और यह जो जन्म तुझे मिला है, उसमें तू मुझे प्राप्त कर सके या ना कर सके, इसमें भी संशय है." फ़िल्मी धुनों पर बने गानों का प्रसारण बहुत देर तक होता रहा और इस दौरान स्वामी जी को परमात्मा स्वरुप मानकर औरतों द्वारा उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेने का सिलसिला भी शुरू हो गया.

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