Wednesday, March 3, 2010

डॉक्टर, वायु और मरीज़

डॉक्टर, वायु और मरीज़
                                                                      अतुल मिश्र  

    होली के बाद उतना फायदा शायद सिंथैटिक मावे से बनी मिठाइयों से हलवाइयों को नहीं होता होगा, जितना इनके ग्राहकों से डॉक्टरों को होता है. पूरे साल वे इस शुभ दिन का इंतज़ार करते हैं कि कब आये ? कुछ तो मौसम की बेवफाई और कुछ सरकारी छूट की बदौलत धड़ल्ले से बिक रहीं मिलावटी मिठाइयों का यह प्यार ही है कि लोगों ने अब बीमार पड़ना शुरू कर दिया है.
    "क्या दिक्कत है ?" यह जानते हुए भी कि इन दिनों जो आदमी अपना पेट पकड़कर बैठा है, वह किस बीमारी से पीड़ित होगा, डॉक्टर ने सवाल करने का अपना फ़र्ज़ पूरा करते हुए पूछा.
    "कुछ नहीं, पेट में अफारा हो गया है. वायु घूम रही है, मगर निकलने का रास्ता नहीं ढूंढ़ पा रही." मरीज़ बनकर आये किसी आदमी का जवाब होता है.
    "यह तो बहुत ग़लत है. तुमने कोशिश की कि वह ख़ारिज हो जाये ?" डॉक्टर ने वह सवाल किया, जो उसके पेशे से कम और योग गुरुओं के पेशे से ज़्यादा ताल्लुक रखता है.
    "जी, कल से कोशिश कर रहा हूं. गैस तो नहीं , मगर ऐसा लगता है मेरा दम ज़रूर निकल जाएगा." मरीज़ ने अपनी मौलिक पीड़ा से भली-भांति अवगत कराते हुए कहा.
    "कोई चिंता की बात नहीं है. मैं सब ठीक कर दूंगा. यह बताओ कि क्या खाया था इन दिनों ?" डॉक्टर ने सामान्य-ज्ञान का वह सवाल किया, जो फिलहाल करना उस मरीज़ को खल रहा था और अगर वह डॉक्टर नहीं होता तो वह उसका क्या हाल करता, यह भी वह मन ही मन सोच रहा था.
    "क्या खाते हैं इन दिनों लोग, वही सब मैंने भी खाया था." मरीज़ ने अपनी झल्लाहट पर महंगाई की तरह काबू करने की असफल कोशिश करते हुए जवाब दिया.
    "गुजियां खाई होंगी ?" डॉक्टर ने अपनी नौलिज़ का सार्वजनिक प्रदर्शन करते हुए लाइन से बैठे मरीजों की तरफ ऐसे देखा, जैसे उसने कोई इतनी ज्ञानपरक बात कही हो कि सब लोगों को उसकी इस बात पर दाद देनी चाहिए.
    "अब मैं चलूँ ?" मरीज़ ने इतना कहते ही एक जोरदार धमाका किया, जिससे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वायु का वेग अगर ज़्यादा प्रबल हो तो वह किसी भी वक़्त अपना रास्ता खुद ही बिना किसी सूचना के ढूंढ़ लेती है.
    "बिलकुल, फ़ौरन बाहर जाकर बैठो, मैं बाद में देखता हूं तुम्हें." डॉक्टर ने वायु-प्रदूषण के ख़िलाफ अपना फतबा जारी करते हुए कहा.
    मरीज़ अपनी देहाती भाषा में कुछ बुदबुदाया, जिसका सही अर्थ तो वाक्यों के धीमेपन की वजह से ठीक से समझ में नहीं आया, मगर इतना ज़रूर सुनाई दिया कि अगर "ऐसे डॉक्टर होने लगे तो इस मुल्क से बीमारी भले ही ना ख़त्म हो, मगर इसकी आबादी बहुत जल्दी ही ख़त्म हो जायेगी!"

1 comment:

निर्मला कपिला said...

व्यंग के माध्यम से अच्छा सन्देश भी। धन्यवाद