हमने खोया बहुत, ज़िन्दगी के लिए
Wednesday, February 17, 2010 साहित्य
दर्द होगी दवा, जिस किसी के लिए,
हो मुबारक बहुत, बस, उसी के लिए,
हमने पाया बहुत, मौत के वास्ते
हमने खोया बहुत, ज़िन्दगी के लिए !
वो ना जाने कहां, भीड़ में खो गयी
हम तरसते रहे, जिस ख़ुशी के लिए !
एक सागर हमें, इस तरह का मिला
रो रहा था, ज़रा सी, नदी के लिए !
जोड़ सम्बन्ध को, तोड़ प्रतिबन्ध को
दुश्मनी भी करी, दोस्ती के लिए !
उस अंधेरे की औक़ात, मत पूछिए
जो लुटा उम्र भर, रोशनी के लिए !
हमने कैसे, कहां, काट ली ज़िन्दगी
ये सवालात हैं, ख़ुदकुशी के लिए !
कोई धन की हिफ़ाज़त में जगता मिला
कोई सो ना सका, इस कमी के लिए !
कोई रोता मिला, कोई सोता मिला
लोग पागल मिले, इक हंसी के लिए !
हम बनाने लगे, शोधशालाओं में
आदमी का ज़हर, आदमी के लिए !
छोड़ दी वो ज़मीं, राम-अल्लाह ने
लोग लड़ते रहे, जिस ज़मीं के लिए !
-अतुल मिश्र
हो मुबारक बहुत, बस, उसी के लिए,
हमने पाया बहुत, मौत के वास्ते
हमने खोया बहुत, ज़िन्दगी के लिए !
वो ना जाने कहां, भीड़ में खो गयी
हम तरसते रहे, जिस ख़ुशी के लिए !
एक सागर हमें, इस तरह का मिला
रो रहा था, ज़रा सी, नदी के लिए !
जोड़ सम्बन्ध को, तोड़ प्रतिबन्ध को
दुश्मनी भी करी, दोस्ती के लिए !
उस अंधेरे की औक़ात, मत पूछिए
जो लुटा उम्र भर, रोशनी के लिए !
हमने कैसे, कहां, काट ली ज़िन्दगी
ये सवालात हैं, ख़ुदकुशी के लिए !
कोई धन की हिफ़ाज़त में जगता मिला
कोई सो ना सका, इस कमी के लिए !
कोई रोता मिला, कोई सोता मिला
लोग पागल मिले, इक हंसी के लिए !
हम बनाने लगे, शोधशालाओं में
आदमी का ज़हर, आदमी के लिए !
छोड़ दी वो ज़मीं, राम-अल्लाह ने
लोग लड़ते रहे, जिस ज़मीं के लिए !
-अतुल मिश्र
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