Thursday, February 25, 2010


अतुल मिश्र
वे लोग किसी ऐसी पार्टी के कार्यकर्ता थे, जिसका शासन इन दिनों उस सूबे में नहीं था और शायद इसीलिये वहां धरने और प्रदर्शन करना उनका फ़र्ज़ था. यूं तो वे लोग महीने में एक-दो बार धरने और प्रदर्शन कर लिया करते थे, मगर आज वे जिस वजह से धरने पर बैठे थे, उसकी अपनी अलग ही अहमियत थीI इस किस्म के तमाम धरने देने के लिए डी.एम. का ऑफिस या निवास सबसे उपयुक्त जगह मानी जाती हैI यहां फालतू पड़ी जगह इतनी होती है कि धरना अगर लंबा खींचने का मूड हो तो हाथ-पैर फैलाकर आराम से लेटा भी जा सकता है.
"आज का धरना हम लोग किस खुशी में कर रहे हैं?" धरने वाली पार्टी के किसी ऐसे कार्यकर्ता का सवाल उभरा, जिसने राजनीति की आरंभिक शिक्षा अपनी पनवाड़ी की दुकान से ली थी.
"ख़ुशी में नहीं कर रहे, बेवकूफ़. अफ़सोस में कर रहे हैं कि जो कुछ भी हुआ, वह ग़लत हुआ और उसे कभी नहीं होना चाहिए थाI" पार्टी के पदाधिकारी होने की जुगत में लगे एक अन्य कार्यकर्ता ने अपना वह ज्ञान बिखेरा, जिससे कोई भी असहमत नहीं हो सकता था.
"लेकिन क्या ग़लत हुआ?" पान की दुकान से राजनीति में पदार्पण करने वाले कार्यकर्ता ने फिर पूछा.
"अबे, तुझे पार्टी में ले किसने लिया? तुझे इतना भी बताना पड़ेगा कि हमारी पार्टी की महिला कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज किया इस सरकार की पुलिस ने?" अपनी इस बात को कुछ इस अंदाज़ में सबकी ओ़र देखते हुए कहा गया कि अगर लोग सुनें तो सोचें कि भावी ज़िला-अध्यक्ष इसी को बनाया जाना चाहिए.
"फिर क्या हुआ?" पनवाड़ी की दुकान बंद करके राजनीति में चूना लगाने की कामना से सराबोर नए कार्यकर्ता ने फिर से अपनी जिज्ञासा-शांति के लिए सवाल किया.
"क्या हुआ क्या? कुछ महिलाओं की हालात सीरियस है, बाकी अभी सोच रही हैं कि खुद को अभी सीरियस घोषित करें या नहीं?" पुराने कार्यकर्ता ने अपना मौलिक ज्ञान बिखेरा.
"कर देना चाहिए खुद को सीरियस घोषित. अब नहीं करेंगी तो फिर कब करेंगी?" महिलाओं के प्रति अपनी मौलिक राय से सबको वाकिफ़ कराते हुए नए कार्यकर्ता ने कहा.
"तुम बैठोगे कल से भूख हडताल पर?" पुराने कार्यकर्ता ने उसकी नस टटोलते हुए सवाल किया.
"बैठ जायेंगे, हमें क्या है? बस, खाना वक़्त पर मिल जाना चाहिए. फिर कितने ही दिन बैठा लो हमें भूख हड़ताल पर I" भीमकाय पनवाड़ी ने 'साफ़-साफ़ बात करना बेहतर रहता है', इस बात के समर्थन अपनी बात सामने रखते हुए कहा.
"बावला हुआ क्या? अबे भूख हड़ताल का मतलब भी पता है तुझे? कोई खाना-वाना नहीं. जल्दी बोल, वरना हम किसी और को तैयार करें." पार्टी के लिए कुर्बानी खुद ना देकर दूसरों को इसके लिए प्रेरित करने वाले भावी पदाधिकारी ने पूछा.
"मुझे तो आज ही अपनी बीवी को लेकर अस्पताल जाना है. डिलीवरी होनी है एक-दो दिन में. अगली बार पक्का रहा I" यह कहकर पनवाड़ी साइड से अपने घर निकल लिया और कुर्बानी के लिए पार्टी के लोग किसी नए बकरे की तलाश में लग गए.

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