Thursday, February 18, 2010

बम-धमाकों पर एक प्रेस-कांफ्रेंस

बम-धमाकों पर एक प्रेस-कांफ्रेंस 
                               अतुल मिश्र 

    बम-धमाकों को लेकर गृह मंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस रखी थी, ताकि मीडिया की मार्फ़त यह बताया जा सके कि इस बार जो धमाके हुए हैं, उनमें विरोधी पार्टी की जगह इस बार भी किसी आतंकी गुट का ही हाथ है और हमेशा की तरह अब इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा I
    "आप इन धमाकों के पीछे किसका हाथ मानते हैं ?" किसी न्यूज़ चैनल के रिपोर्टर ने अपने हाथ अपनी जेबों में छिपाते हुए पूछा I
    "देखिये, अभी कुछ क्लीयर नहीं हुआ है कि किसका हाथ माना जाये I जैसे ही निश्चित होगा, आपको बता दिया जाएगा I" कम शब्दों में ज़्यादा बात कहने के लिए खुद को मशहूर मानने वाले मंत्री जी का जवाब होता है I
    "लेकिन किसी आतंकी गुट ने आज ही अपना हाथ होने की बात क़ुबूल की है ?" रिपोर्टर ने अपनी ख़ुफ़िया जानकारी से अवगत कराते हुए ऐसे पूछा, जैसे आतंकी गुट ने यह बात उसके कान में खुद डाली हो और अब वह उसका खुलासा इस सवाल की मार्फ़त कर रहा हो I
    "इस बारे में अभी हम कुछ नहीं कह सकते I यह काम जांच एजेंसियों का है I वे जैसा कहेंगी, हम बता देंगे I" मंत्रीजी ने अपनी बात में साफगोई का प्रसारण करते हुए कहा I
    "सरकार अब क्या कर रही है ?" एक अन्य अखब़ार के कम तनख्वाह  पाने वाले पत्रकार ने इस सवाल को कुछ ऐसे अंदाज़ में पूछा, जैसे वो अपने अखब़ार-मालिक से वेतन बढ़ाने की बात कर रहा हो और इस बारे में क्या सोचा जा रहा है, यह पूछ रहा हो I
    "सरकार सोच रही है I"
    " क्या सोच रही है ?"
    " यही कि क्या सोचा जाये ?"
    " क्या सोचा जाना चाहिए ?"
    " यह सोचना सरकार का काम है I"
    " फिर भी कुछ तो सोचा होगा ?"
    " यह जब सोच लिया जाएगा, हम बता देंगे I" वाक्यों के संक्षिप्तीकरण में आस्था रखने वाले मंत्री जी जवाब देते हैं I
    "बहुत दिनों से सुन रहे हैं कि सोचा जाएगा, सोचा जाएगा I आखिर कब तक सोच लेगी आपकी सरकार ?" समवेत स्वर के ज़रिये केवल यह अहसास कराने को कि हम सब पत्रकार एक हैं, कई पत्रकारों ने एक साथ शब्दों का हमला किया I
    "इस बारे में भी सोचा जा रहा है I"
    "मृतकों और घायलों के बारे में क्या सोच रहे हैं ?"
    "वो हम पहले ही सोच चुके हैं I"
    "क्या ?"
    "यही कि सबको मुआवजा दिया जाएगा I"
    "कब तक मिल जाएगा ?"
    "अब यह तो निर्भर करता है कि कितने लोग मरे हैं और कितने घायल हैं I हालात देखकर ही सब कुछ होगा I" मंत्री जी अपना यह जवाब देकर उठने की तैयारी करने लगते हैं और इस तरह बम-धमाकों पर चल रही प्रेस-कांफ्रेंस अगले धमाकों तक के लिए स्थगित हो जाती है I

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