Wednesday, December 9, 2009





हादसों से, उबर गया कैसे ?
यह करिश्मा, मैं कर गया कैसे ?

मेरी आंखों का एक ही आंसू,

रास्ते में, ठहर गया कैसे ?
मुझको जीने की तमन्ना देकर,
मेरा विश्वास, मर गया कैसे ?

मैंने पूछी जो खैरियत उसकी,
उसका चेहरा, उतर गया कैसे ?

जिसने इल्ज़ाम लगाए आखिर,
उसके इल्ज़ाम, सर गया कैसे ?

मैंने तूफ़ान सैकड़ों देखे,
फिर हवाओं से, डर गया कैसे ?

गाँव रहकर यह समझ में आया,
गाँव चलकर, शहर गया कैसे ?

सांप हैरान, सोचते होंगे,
आदमी में, ज़हर गया कैसे ?
-अतुल मिश्र


3 comments:

Unknown said...

BAHUT KHOOBSURAT KAVITA LAGI.....AISE HE LIKHTE REHEYAE!

Unknown said...

Very nice...keep it up!

Rajat Narula said...

मैंने तूफ़ान सैकड़ों देखे,
फिर हवाओं से, डर गया कैसे ?

very nice poem, with lot of aggression and though provoking writing...