Tuesday, December 8, 2009






अतुल मिश्र
रोडवेज़ की बस शायद शर्मिन्दगी की वजह से अपने हिसाब से बस स्टैंड के बाहर खड़ी थी! जिन्हें कहीं जाना था, वे सब उसमें चढ़ रहे थे और जिन्हें कहीं नहीं जाना था, वे सब बस और उसके चालक को मात्र-सूचक गालियां देते हुए उतर रहे थे! बातचीत जारी थी...
"बीस मर्तबा कहा है कि रोडवेज़ की बसों से आना-जाना बंद करो,मगर तुम हो कि सुनते ही नहीं!" एक महिला-यात्री अपने शौहर जैसे लग रहे सहयात्री को झाड़ रही थी!
"तुम ही तो ज़ल्दी कर रही थीं कि जीजाजी इंतज़ार कर रहे होंगे, जो भी बस मिले उसी में चढ़ लो!" शौहरनुमा आदमी ने अपने सिर की धुल झाड़ते हुए कहा!
"जो भी बस मिले से ऐसी बस से तो नहीं था, जिसे स्टार्ट करने के लिए भी धक्के लगाने पड़ें! इसके तो सारे अंजर-पंजर तुम्हारी तरह हिले पड़े हैं और हैड लाईट भी आगे लटक रही है!" अपने अस्थि-पंजरों की मार्फ़त मात्र अपने जीवित रहने की सूचना देने वाले सहयात्री की ओ़र हिकारत की निगाह से देखते हुए महिला ने कहा और आगे बढ गयी!
"ओय कंडक्टर, पूरे रुपये वापस कर! बीस किलोमीटर के सफ़र में तीस जगह गाड़ी खड़ी की है, तूने! साली इतना हिल रही थी कि खड़े होना तो अलग, बैठना भी मुश्किल हो गया!" हर किस्म की व्यवस्था से हर वक़्त परेशान रहने वाले किसी यात्री ने अपना गुस्सा व्यक्त किया!
"क्या करें, साब, जो गाड़ी मिल जाती है,वही लेकर चल दिए! अब नई-नवेली बहू जैसी बसें कहां रहीं! इस रूट के लिए ऐसी ही बसें मंज़ूर हुई हैं!" बस-कंडक्टर ने पूरी ईमानदारी का परिचय देते हुए यह सार्वजनिक सूचना जारी कर दी ताकि किसी और को इसी किस्म की कोई शिकायत हो तो वह चुप रह कर निकल ले और विधान-सभा में मौजूद विधायकों की तरह कोई गाली-वाली ना दे!
बस में सवारियों का आना-जाना शुरू हो गया! कंडक्टर ने अपने दायित्व का पूर्ण निर्वाह करते हुए मुंह में लगी सींटी को जोरदार फूंक मारी,मगर सीटी नहीं बजी! किसी यात्री के मुंह से निकला, "सीटी तक तो बजा नहीं पा रहा यह, गाड़ी क्या ख़ाक चलाएगा?

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