Wednesday, December 2, 2009




अतुल मिश्र 
महंगाई से त्रस्त जनता की आवाज़ जनता तक पहुंचाने की ज़िम्मेदारी के तहत एक टी.वी. चैनल रास्ता चलते लोगों से इस समस्या पर उनके अपने विचार पूछने में लगा है-

"महंगाई पर आपके क्या विचार हैं?

"विचार क्या हैं जी, बस यूं समझो कि परेशान हैं जी!"

"किस किस्म की परेशानी महसूस कर रहे हैं आप?"

"आटा महंगा, दाल महंगी और उस पर दारू के रेट भी बढ़ रहे हैं! महंगाई की टेंशन में क्या पिएगा आदमी?"

"सही कह रहे हैं आप! अब हम सरोज बाला जी से बात करते हैं, जो बहुत देर से भीड़ चीर कर आगे आने का प्रयास कर रही हैं! सरोज जी, आप क्या महसूस करती हैं?"

"जी, मैं एक सोशल वर्कर हूं और इस नाते बहुत बुरा महसूस कर रही हूं! इतना बुरा कि आपको कुछ बता भी नहीं सकती! मेरी सरकार से गुज़ारिश है कि महंगाई पर लगाम कसें, वर्ना महिलायें सड़कों पर उतर आयेंगी और ट्रेफिक-पुलिस को संभालना मुश्किल हो जाएगा!" समाज-सेविका ने इतनी ऊंची आवाज़ में कहा कि अगर ट्रैफिक-पुलिस वाले सुन लें तो डर के मारे ड्यूटी पर ही न आयें!

"आपकी बात भी सुनी हमने और अब कुछ और लोगों से भी सुनना चाहेंगे इस मुद्दे पर! हमारे सामने एक ऐसे सज्जन खड़े हैं, जो भीख मांगने का कारोबार करते हैं! हम इनसे जानना चाहेंगे कि इनके कारोबार पर इसका कितना असर पड़ा? जी हाँ, आप बताएं आपकी भीख पर इसका क्या बुरा असर पड़ा?"

"बुरा ही नहीं, बहुत बुरा असर पड़ा!" भिखारी ने बताया!

"किस तरह से? कुछ खुलासा करके बताएँगे?"

"महंगाई के हिसाब से हमारी भीख की रक़म भी बढ़नी चाहिए थी, मगर लोग अब "महंगाई है, बाबा! माफ़ करो," कहकर आगे निकाल लेते हैं! जिस देश में भीख भी महंगाई के हिसाब से दी जाती हो, उस देश का कुछ नहीं हो सकता!

"देखिये, ये थे करोड़ीमल 'भिखारी', जो वक़्त मिलने पर कवितायें भी लिखते हैं, मगर भीख न मिलने की वजह से परेशान हैं और अब कवि-सम्मेलनों में हिस्सा लेकर अपना कैरियर बनाना चाहते हैं! फिलहाल हम लेते हैं एक छोटा सा ब्रेक और आगे बताएँगे कि और कौन लोग हैं, जो इस समस्या से परेशान हैं!" इसके बाद टी.वी. पर महंगे और नारी- लुभावने इत्रों का विज्ञापन शुरू हो जाता है!


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