Thursday, November 5, 2009




गेह से बेदखल हो गए,
ज़िन्दगी में सफल हो गए,

हम न दोहे, रुबाई बने
बस, अधूरी ग़ज़ल हो गए !

थे बिहारी के दोहे सधे,
राजनितिक 'अटल' हो गए !

कीच हम पर उछली गयी,
बस, तभी से कमल हो गए !

उम्र भर जंग लड़ते रहे,
लोग क्यों बेअक़ल हो गए !

दलदलों में लगा डूबने,
देश में इतने दल हो गए !
-अतुल मिश्र

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