Friday, November 6, 2009




अतुल मिश्र
"हेलो, बेटा कल्लन, मैं बोल रहा हूं- तुम्हारा बाप ! " बलगमी आवाज़ में देहाती बाप अपने दिल्ली रह रहे बेटे से फोन पर बात करता है !
"बाप बोल रहे हो तो क्या कोई अहसान कर रहे हो ? " दिल्ली कि हवा लगे बेटे कि कड़क दार आवाज़ फोन के ज़रिये सुनाई देती है !
"नहीं बेटा, बात दरसल यह थी कि मैं तुमसे मिलने का ख्वाहिश मंद था ! सोचा, कुछ दिन तुम्हारे पास भी रह लूं ! "बाप बनने कि ग़लती का खामियाजा यूं बुढ़ापे में भुगतना पड़ेगा, यह सोच कर देहात से आए बाओ ने लगभग गिडगिडाते हुए अपनी बात पूरी की !
" कहाँ रह लूं ? मैं खुद अपने दोस्त के घर रह रहा हूं , आपको कहां रखूंगा- अपनी खोपडी पर ? " बचपन में हमेशा अपने बाप की खोपडी पर चढ़े रहने वाली औलाद का सवाल होता है !
"बेटे, तुम्हारी मां के गुज़र जाने के बाद मैं बिलकुल अकेला पड़ गया हूं ! " देहाती बाप ने फोन पर ही अपनी पीडा व्यक्त की !
"क्यों, कलावती का क्या हुआ ? "
"कौन कलावती ?? "
"वही, जिससे छिप-छिप कर आप गन्ने के खेतों मैं मिला करते थे और एक बार अम्मा ने दोनों को रेंज हाथों पकड़ लिया था ! " बाप की तमाम कारगुजारियों से वाकिफ बेटे ने याद दिलाया !
"वो तो मैं उसे गन्ने तोड़ने में मदद कर रहा था...... ! " बाप ने कहानी को यूटर्न की बजाय ओटर्न देने की कोशिश की !
"अब हमारा ज्यादा मुंह न खुलवाओ ! अम्मा के जाने के बाद गांव की औरतों ने हमारे घर के पास से निकलना बंद कर दिया था, यह बात आप भूल गए ? " टेलीफोन पर बाप को टरकाने के लिहाज़ से बेटे ने अतीत की यादें ताजा करवायीं !
"उन बातों को छोड़, बेटा ! पुराने ज़ख्मों को क्या छेड़ना ? " बाप ने अतीत पर ख़ाक डालने की नसीहत दी !
" कहाँ से बोल रहे हैं इस वक़्त ? "
"दिल्ली रेलवे स्टेशन से बोल रहा हूं, बेटा ! "
" आप एक काम करें........! "
"क्या ? "
"वापसी का टिकिट लेकर गांव निकाल लें ! " बेटे ने राय दी !
वापसी का टिकिट लेने के लिए लाइन में लगा बाप अब उस कलावती क्र बारे में सोच रहा था, जो गांव के ही किसी युवा साधू के साथ भागकर उसे अकेला छोड़ गयी थी और अगर वो होती तो वह अपने इस नालायक बेटे के पास
कभी नहीं आता !


1 comment:

कुमार नवीन said...

बहुत अच्‍छा लगा । बधाई ।