अतुल मिश्र
सरकारी इश्तहारों में जो नारे लिखे होते हैं, उनकी पोज़ीशन अब यह है कि उन्हें लोग बिना पढ़े निकल लेते हैं, जिससे उन सरकारी मंसूबों पर पानी फिर जाता है, जो दीवारों पर कुछ इस अंदाज़ में लिखे जाते हैं कि आदमी भयभीत ही ना हो, उनसे डरकर उन पर अमल करना भी शुरू कर दे. लोग अब इन्हें देखकर मन ही मन कहते हैं कि यार, दफ़ा करो, जो काम खुद सरकार करवा रही है, उसी को मना भी कर रही है कि " शराब पीना अभिशाप है. " या " बाप शराब पियेंगे, बच्चे भूखे मरेंगे. " सरकार ने यह सोचा होगा कि इंडियन बाप जो हैं, वो इन इश्तेहारों से डरकर शराब पीना बंद कर देंगे और हमें यह कहने को हो जाएगा कि हमारी सरकारी मुहिम सफल रही.
मज़े की बात तो यह है कि जिस मद्य-निषेध विभाग की तरफ से ये विज्ञापन किये जा रहे हैं, उसका मंत्री कौन है और किसी भी शहर में उसका ऑफिस कहां है, भगवान सहित कोई नहीं जानता. अगर यह ऑफिस किसी गली के किसी कोने में अपना अस्तित्व बनाए हुए कहीं है भी, तो वह क्या कर रहा है, यह भी कोई नहीं जानता. कायदे में तो जिस तरह से दारू की दुकानों के बराबर ही ये विज्ञापन लिखकर दर्ज़ किये जा रहे हैं, वहां इस विभाग के कर्मचारियों को भी तैनात कर देना चाहिए कि तुम किसी को भी शराब नहीं पीने दोगे और जो पिए, उसे पकड़कर थाने पहुंचा दो, मगर ऐसा आज तक नहीं हुआ. लोग " शराब पीना अभिशाप है." में से " अभिशाप " पर कालिख या स्वसुविधानुसार गोबर पोतकर अन्दर निकल लेते हैं.
सरकार दोनों बातों में दिलचस्पी रखती है कि शराब के राजस्व से उनकी सरकार भी चलती रहे और मद्य-निषेध विभाग भी. लोगों से जिस बात को मना करो, वे उस बात को करते ज़रूर हैं, इस लिहाज़ से सरकार ने कुछ तो अपने छंद बोध से और कुछ जहां बोध सही नहीं लगा, वहां सीधे-सादे शब्दों में अपनी आवाम को यह पैग़ाम भी दे दिया कि दारू पीने के बाद यह सोचो कि तुम्हारे बच्चे अब भूखे मरेंगे कि नहीं ? ऐसे-ऐसे डरावने इश्तहार हैं कि आदमी बिना डरे ना रहे और अपना डर दूर करने को दारू ज़रूर पिए कि यार, सरकार जब खुद बिकवा रही है तो पीने में क्या हर्ज़ है ? ज़्यादा पी ली तो इसी बात को मुददा बना कर सरकार को चार-छह गालियां भी दे लीं कि मन हल्का हो जाये.
मैं अक्सर सोचता हूं कि सरकार अगर वास्तव में शराब पीने को अभिशाप मानते हुए इसकी बिक्री पर ही रोक लगा दे तो क्या होगा ? इस बारे में जब एक मंत्री से पूछा तो उन्होंने बताया कि होगा क्या, भट्टा बैठ जाएगा सरकार का. सरकार का मुंह अमरीका या विश्व बैंक की तरफ मुड़ जाएगा कि भैया, भगवान के नाम पर दे दो या ईमान के नाम पर दे दो. पड़ोसी मुल्कों को समझाना पड़ेगा कि भाई, आजकल ज़रा हालात सही नहीं हैं, इसलिए हमला-वमला करने से पहले सोच लेना कि करना है या नहीं. हमारा मुल्क अब अमन प्रिय हो गया है और लोगों ने दारू भी छोड़ रखी है. सच में, अगर एक बार ऐसा हो जाये तो शराबियों का तो जो होगा, वह होगा ही, सरकार का क्या हाल होगा, यह सोचकर मैं अक्सर गर्मियों में भी कांप उठता हूं.
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