Thursday, February 25, 2010


अतुल मिश्र
सोचते वक़्त कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि अब क्या सोचा जाए या क्या नहीं सोचा जाए. बस, सोचते रहें. सोचने से सोच पाने की शक्ति का विकास होता है और लोगबाग ऐसी-ऐसी बातें सोच लेते हैं कि हम यह कभी सोच ही नहीं सकते कि बंदा जो है, वो ऐसी बातें भी सोच सकता है, जिन्हें सोचा नहीं, सिर्फ़ किया जाता है.
"क्या सोच रहे हैं अब?" महंगाई की तरह तेज़ी से बढ़ती बेटी के हाथ पीले करने को लेकर किसी की बीवी पूछती है.
"देखो, कुछ सोचते हैं." पति अपना सारा अखबारी ज्ञान अखब़ार को पटकते हुए एक तरफ रख देता है और सोचने लग जाता है.
"ऐसे तुम्हारे सोचने से काम नहीं चलेगा. फोन करके लड़के वालों से पूछो कि वे हमारी गुड्डो के बारे में क्या सोच रहे हैं?" बीवी बोलती है.
"हां, बात कर लूंगा." बात करने के बारे कुछ सोचते हुए जवाब मिलता है.

सोचने के बारे में एक सबसे ख़ास बात यह होती है कि उसके बारे में भी हमें कुछ देर तक यह सोचना पड़ता है कि क्या सोचें? जैसा हम सोचना चाहते है, वही सोचें या जैसा हम सोच भी नहीं सकते, वह सोचें?
प्रधानमंत्री यह सोच सकते हैं कि महंगाई पर उन्हें पब्लिक से क्या कहना चाहिए? ऐसा कह दिया जाए तो पब्लिक क्या सोचेगी और अगर वैसा कह दें तो उसके क्या अंजाम होंगे? यह प्रधानमंत्री बनना भी पूरे बवाल का काम है. इसीलिए लोग खुद ना बनकर दूसरों को बना देते हैं. अब मुल्क में ज़रा सी भी दिक्कत हो तो उन्हीं को सोचना पड़ता है कि क्या हल सोचकर बताएं? बताएं भी या न बताएं? बता दिया और उसी पर विपक्ष ने हंगामा काट दिया तो अब यह सोचो कि इनको कैसे शांत करके मनाया जाए?

सोचने के लिए बहुत कुछ है. पहले खुद के बारे में यह सोचकर कि इस ग़म से भरी दुनिया में हम क्यों आये हैं, अपने भविष्य के बारे सोचें. सोचने को बहुत कुछ है. कम तनख्वाह, ज़्यादा मेहनत, महंगाई, सरकारी बयान, पड़ोसी की रोजाना बाहर खड़ी मिलने वाली बीवी, आप की हरकतों पर हमेशा शक की सुई लिए घूमने वाली आपकी लड़ाका बीवी से लेकर इंडिया आकर फालतू अपना वक़्त बर्बाद करने की ओबामा की भावी योजना, सीमापार तनाव कहकर डराने की सरकारी साज़िश या अमर सिंह और मुलायम सिंह के रिश्ते या सरकारी बजट पर बवाल कि यह ऐसा क्यों है, वैसा क्यों नहीं है, जैसे सैकड़ों मुद्दे हैं, जिन पर हम अकसर ही कुछ न कुछ सोचते हैं. आज अगर हमने सोचने के बारे में ही थोड़ा-सा कुछ सोच लिया तो कौन सा गुनाह कर दिया? इस पर भी कुछ न कुछ सोचना होगा.

कार्टून : शिवाजी जावरे

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