Monday, February 22, 2010

होली पर विशेष--




              एक हास्य-ग़ज़ल 
                    अतुल मिश्र 
 
होलियाँ, होलियाँ, होलियाँ, होलियाँ,
लग रहीं मूर्ख नेताओं सी टोलियाँ,

रंग में, संग में, भंग में, अंग में,
कल चढ़ा लीं वज़न से अधिक गोलियाँ !

सुन गधों के स्वरों को, यह लगने लगा,
इनसे बैटर हैं, नेताओं की बोलियाँ !

वो जो मुर्दे, बुजुर्गों के, गुज़रे अभी,
देखकर मर गए, भीगती चोलियाँ !

हमको ऐसी दिखीं, भीगती नारियाँ,
जैसे चावल पे चिपटी हुईं रोलियां !

रो रही थीं, हँसी के लिए कोठियाँ,
हँस रहीं, आँसुओं से भिगी खोलियाँ !

जिसको छेड़ा, वो रंगीन किन्नर मिला,
उठ गयीं, हसरतों की सभी डोलियाँ 

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