Tuesday, January 5, 2010




ग़ज़ल 
गीत-संगीत में, जो गई ज़िन्दगी
यों बहुत खुशनुमा, हो गई ज़िन्दगी

हमसे चाहें बहुत दूर ही वो रही
आपके साथ में, तो गई ज़िन्दगी

चैन भी खो गया, रैन भी खो गई
जाने क्या-क्या यहां, खो गई ज़िन्दगी

हाल पूछा, तो वो सिर्फ खामोश थी
आंख नम हो गई, रो गई ज़िन्दगी

अब बुढ़ापे का कुछ हाल, मत पूछिए
नींद आने लगी, सो गई ज़िन्दगी

ढूंढने जो गए, तो पता यह चला
यह गई, यह गयी, वो गई ज़िन्दगी

घर की बिजली की मानिंद है ज़िन्दगी
आ गयी, आ गयी, लो गई ज़िन्दगी
-अतुल मिश्र