Saturday, January 23, 2010





अतुल मिश्र
छब्बीस जनवरी क्यों मनाई जाती है, इस पर विद्वानों में उतने ही मतभेद हैं, जितने इस मुल्क में खुद को विद्वान् समझने वाले लोग हैं. ये तमाम मतभेद उनमें इस मसले पर एकमत होने की ज़रूरत की वजह से हैं. यह ज़रुरत ना होती तो उनमें मतभेद भी शायद नहीं होते. हमारे और हमारे मास्साबों के बीच भी कुछ इसी किस्म के मतभेद हैं. वे इसे गणतंत्र-दिवस के रूप में मनाते हैं और हम जो हैं,वो इसे छब्बीस जनवरी के रूप में मनाना चाहते हैं, ताकि इस दिन तो कम से कम छुट्टी रहे और हम लोग उन लोगों को याद कर सकें, जिन्होंने हमें इस किस्म का गणतंत्र बनाकर भावी बेरोजगार होने के रास्ते दिखाए. जिस दिन पहली मर्तबा यह दिन मनाया गया, हमारे दादा-परदादों ने ना मालूम इसे किस ढंग से मनाया था, लेकिन हमारे पिताजी बताते हैं कि उन दिनों इतनी विकट और मल्लिका शेरावत की कमर की तरह की कमर तोड़ महंगाई नहीं थी, इसलिए लोग-बाग़ जो थे, वे खुश थे और दूध-घी नाम के महंगे और दुर्लभ पदार्थों का सेवन कर के अपनी खुशियां व्यक्त कर रहे थे.

इस दिन भी हम सब लोगों को नामालूम क्यों स्कूल बुलाया जाता है ? हमारे कस्बे के उस बुक डिपो पर हमें झंडे खरीदने जाना पड़ता है, जो हमारे स्कूल के हेडमास्साब का भतीजा है और हमारे देश के झंडों को काग़ज़ की शक्ल में छपवाकर हमें बेचता है. पैसे देने की वजह से हमें उन झंडों की हिफ़ाज़त करनी पड़ती है कि कहीं फट-फटा ना जाएं. भेड़-बकरियों की संस्कृति में विश्वास रखने वाले स्कूली मास्साब हमें कतारों में अपने साथ लेकर ऐसे चलते हैं, जैसे हम कहीं रास्ते में अपने घर ना निकल लें. उनके पास बेंत नुमा एक ऐसी संटी भी होती है, जिससे लगता है कि हम वास्तव में गणतंत्र-दिवस पर इस्तेमाल करने के लिए पैदा हुए हैं और आज वाकई गणतंत्र-दिवस मनाया जा रहा है.

ख़ास इस दिन हेडमास्साब के साथ ही हमारे स्कूल के मैनेजर का आवारा भतीजा फ़िल्मी गानों में अपनी देशभक्ति का इज़हार करता है कि........" मेरे देश की धरती, सोना उगले, उगले हीरे मोती. मेरे देश की धरती......!! " इसके बाद जो, " हां हा, हा, हों,हो हो !!........" जैसा कोरस गान हम सब लोग मिलकर गाते हैं. यह हालांकि बहुत बुरी पोजीशन होती है, फिर भी हम सब इसका निर्वाह करते हैं. इस दिन ख़ासतौर से, अपने-अपने झंडे वापस सही-सलामत देने की वजह से हेडमास्साब और उनका भतीजा हमारे प्रति अपने भाषण में आभार व्यक्त करते हैं कि हमें ऐसे ही देश भक्ति से आगे भी काम लेना है. नंबर अगर सही मिल जाएं इस बार भी, तो हेड मास्साब के भतीजे के पास फालतू पैन और काग़ज़ खरीदने के लिए जाना बुरा नहीं लगेगा.

सवाल यह था कि हम गणतंत्र-दिवस क्यों मनाते हैं ? यह एक निहायत ही अच्छा सवाल है और इसे पूछा जाना भी बहुत ज़रूरी है, वरना ऐसा लगेगा कि जैसे हेडमास्साब और देशभक्ति के बीच कोई रिश्ता ही नहीं है. हमें अपने देश से उतना ही प्यार है, जितना हेड मास्साब को अपने भतीजे से है. हम जब स्कूल में 'गांधीजी' और 'नेहरूजी' की 'जय' बोल रहे होते हैं तो ऐसा लगता है, जैसे हम अपने हेड मास्साब और उनके भतीजे की जय बोल रहे हों. इतना कुछ लिखने के बाद भी, अगर हमें पूरे नंबर नहीं मिल पाते हैं, तो इसके लिए वे मास्साब ही ज़िम्मेदार होंगे, जो गणतंत्र-दिवस की हक़ीक़त से पूरी तौर पर वाक़िफ नहीं हैं. इससे ज़्यादा छब्बीस जनवरी के बारे में और कुछ नहीं कहा जा सकता.


कार्टूनिस्ट : शेखर जावड़े

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