Monday, November 23, 2009





अतुल मिश्र
रेलवे- प्लेटफ़ॉर्म पर आदमी से सस्ते ज़हर का शिकार एक कस्बाई यात्री, जिसे देखने से ही यह लगता था कि या तो वो अपने कस्बे से पहली बार ही दिल्ली की ओ़र रवाना हुया है या अगर निकला भी होगा तो अपने किसी ऐसे बूढे-बुज़ुर्ग के साथ, जो ज़हर-खुरानी गिरोह के बारे में या तो अखबारों में पढ़ चुके हों या सुन चुके हों कि रेलवे-पुलिस के अलावा रेलों में ऐसे लोग भी लूटपाट करने के लिहाज़ से चलते हैं! लोग उसे देखकर सरकारी शराब जगह-जगह बिकने की वजह से या तो शराबी समझते हैं या 'ज़हर-ख़ुरानी' नामक गैर सरकारी संगठन की ओ़र से बेहोश किया गया!
लोगों की भीड़ उसके चारों ओ़र इस अंदाज़ में खड़ी थी, जैसे रेल-यात्रा करके उसने कोई इतना बड़ा गुनाह कर दिया हो, जिसकी सज़ा उसे आज इस रूप में मिल गयी हो! प्लेटफ़ॉर्म पर मौजूद उस भीड़ में लोग तरह-तरह की अटकलें लगा रहे थे!
"दारू, जब झिलती नहीं है, तो पीते ही क्यों हैं लोग ?" किसी ऐसे संभावित यात्री की आवाज़, जो पूरी बोतल पीने के बाद भी हिल नहीं पाने की क़ाबिलियत रखता हो, मगर घरवालों की वजह से इन दिनों उसने दारू पीना स्थगित कर रखा हो!
"पता नहीं, ज़हरखुरानी का शिकार है या रेलवे-पुलिस का?"
"रेलवे-पुलिस का तो नहीं लगता! उनका शिकार होता तो रेलवे के प्लेटफ़ॉर्म से अलग कहीं पड़ा होता!" रेलवे से ताल्लुक रखने वाले किसी ऐसे शख्स की आवाज़, जो रेलवे-पुलिस की रग-रग से वाक़िफ होने की घोषणा करने की क्षमता तो रखता है, मगर करता नहीं है!
"एकदम सीधा लेटा है! सांस भी नहीं खींच रहा! कहीं मर-मरा न गया हो!" संदेह करने की आदत वाले किसी आदमी ने कहा!
"कौन मर गया?" अचानक उस बेहोश लग रहे रेल-यात्री ने लगभग उठते हुए कहा,"मैं तो बाबा रामदेव जी का 'मरणासन' कर रहा था, आप लोग ग़लत समझ रहे हैं", अपनी अधूरी बात को पूरा करते हुए उस आदमी ने कहा!
"फालतू टाइम वेस्ट किया!" यह कहते हुए भीड़ छंटने लगी और वह आदमी अपनी चादरनुमा चटाई बगल में दबाकर बहुत देर से चलने के लिए लाइन क्लीयर होने के इंतज़ार में खड़ी किसी ट्रेन में चढ़ गया!


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